साहसी लडकी का एक कहानी लिखो।
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Explanation:
तुम फिर कहाँ जा रही हो। आरती ? कभी तो घर पर भी रुककर मेरा हाथ बँटाया करो।माँ ने थोड़ा झुँझलाते हुए पूछा। ” बस माँ कुछ देर में आती हूँ, मेरी कराटे की क्लास है”।माँ फिर बड़बड़ायी… “इस लड़की को कब समझ आएगी, कुछ तो लड़कियों जैसे तौर तरीक़े सीखे,न घर के किसी काम में मन, न लड़कियों की तरह सजना सँवरना, सारे हाव भाव लड़कों जैसे हैं…. कौन करेगा इससे शादी?”ये सोचकर रीमा की माँ,करुणा कुर्सी खींच, सर पर हाथ रख कर बैठ गयी। आरती को पसंद था तेज़ बाइक चलाना,क्रिकेट खेलना और जूडो- कराटे की भी वो एक्स्पर्ट थी।डर जैसी कोई बात न थी आरती में, वो आज की पढ़ी लिखी, स्वच्छंद विचारों वाली स्मार्ट लड़की थी।माँ की इन बातो पर ज़्यादा ध्यान न देकर, वह अपने कामों में व्यस्त रहती थी।पर अब वो बड़ी हो रही थी, तो माँ उसको देखकर कोई न कोई ताना दे ही देती थी।
दिवाली का त्योहार क़रीब आ रहा था और करुणा को बाज़ार से ख़रीदारी करनी थी। शाम को घर पर मेहमान भी आने थे। करुणा जल्दी में आटो ढूँढने लगी पर बहुत देर खड़े रहने पर भी कोई आटो ना मिला तो करुणा थोड़ी निराश हो घर लौट आई।माँ को परेशान देख, आरती बोली” माँ क्या हुआ,क्यूँ परेशान हो?” मंजू बोली- अरे बाज़ार जाना है और बाहर कोई रिक्शा भी नहीं मिल रहा। आरती उठी और तुरंत अपनी बाईक निकाल ली। “बैठो माँ- आज आप मेरे साथ चलो”। कोई चारा न देख उसकी माँ स्कूटर पर बैठ, मार्केट चली गयी। कुछ दूरी पर, जब भीड़ में स्कूटर रुका तो दो लड़कों ने मंजू के गले से सोने की चेन छीन ली। मंजू चीख़ने लगी,चोर… चोर… देखो मेरी सोने की चेन… छीन ली… अरे कोई तो पकड़ो उनको…. चोर… चोर… आरती तुरंत बाईक साइड लगा कर, लड़कों के पीछे भागी और उन लड़कों में से एक को कालर से पकड़ लिया और फिर अपने कराटों के दाँव पेंच से धूल चटा दी… धडाक… धड़ाक, हमें माफ़ करो दीदी… हाथ जोड़ते हुए लड़के चेन वहीं फेंक भागने लगे। आरती अरे रुको कहाँ भाग रहे हो… आगे से कभी हिम्मत मत करना कभी ऐसी हरकत करने की… ये कह वो बड़ी ख़ुशी से अपनी माँ के चैन वापस ले आयी।अब माँ को आरती पर गर्व हो रहा था।
बड़ी गर्व और स्नेह दृष्टि से अपनी बेटी के सर पर हाथ फेरते हुए मंजू। बोली… वाह आरती मुझे तुम पर फक्र है, मैं तुम्हें बिना वजह ही टोकती थी। तुम सच में निडर हो और यही तुम्हारी शक्ति और विश्वास है। इसे सदैव बनाए रखना। आज के वक़्त में यह निडरताअमूल्य तत्व है। बेटी अब कभी तुम्हें काराटे तुम्हारे शौक़ को पूरा करने के लिए कभी नहीं टोकूँगी। रात को घर पर जब सबको इस क़िस्से का पता चला, सभी आरती की बहादुरी की प्रशंसा करते न थके और सबसे आगे थी आरती की माँ।करुणा अब समझ गयी थी की लड़की का भी निडर और बहादुर होना आवश्यक है। सभी आरती की सराहना करते नहीं थक रहे थे
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तुम फिर कहाँ जा रही हो। आरती ? कभी तो घर पर भी रुककर मेरा हाथ बँटाया करो।माँ ने थोड़ा झुँझलाते हुए पूछा। ” बस माँ कुछ देर में आती हूँ, मेरी कराटे की क्लास है”।माँ फिर बड़बड़ायी… “इस लड़की को कब समझ आएगी, कुछ तो लड़कियों जैसे तौर तरीक़े सीखे,न घर के किसी काम में मन, न लड़कियों की तरह सजना सँवरना, सारे हाव भाव लड़कों जैसे हैं…. कौन करेगा इससे शादी?”ये सोचकर रीमा की माँ,करुणा कुर्सी खींच, सर पर हाथ रख कर बैठ गयी। आरती को पसंद था तेज़ बाइक चलाना,क्रिकेट खेलना और जूडो- कराटे की भी वो एक्स्पर्ट थी।डर जैसी कोई बात न थी आरती में, वो आज की पढ़ी लिखी, स्वच्छंद विचारों वाली स्मार्ट लड़की थी।माँ की इन बातो पर ज़्यादा ध्यान न देकर, वह अपने कामों में व्यस्त रहती थी।पर अब वो बड़ी हो रही थी, तो माँ उसको देखकर कोई न कोई ताना दे ही देती थी।
दिवाली का त्योहार क़रीब आ रहा था और करुणा को बाज़ार से ख़रीदारी करनी थी। शाम को घर पर मेहमान भी आने थे। करुणा जल्दी में आटो ढूँढने लगी पर बहुत देर खड़े रहने पर भी कोई आटो ना मिला तो करुणा थोड़ी निराश हो घर लौट आई।माँ को परेशान देख, आरती बोली” माँ क्या हुआ,क्यूँ परेशान हो?” मंजू बोली- अरे बाज़ार जाना है और बाहर कोई रिक्शा भी नहीं मिल रहा। आरती उठी और तुरंत अपनी बाईक निकाल ली। “बैठो माँ- आज आप मेरे साथ चलो”। कोई चारा न देख उसकी माँ स्कूटर पर बैठ, मार्केट चली गयी। कुछ दूरी पर, जब भीड़ में स्कूटर रुका तो दो लड़कों ने मंजू के गले से सोने की चेन छीन ली। मंजू चीख़ने लगी,चोर… चोर… देखो मेरी सोने की चेन… छीन ली… अरे कोई तो पकड़ो उनको…. चोर… चोर… आरती तुरंत बाईक साइड लगा कर, लड़कों के पीछे भागी और उन लड़कों में से एक को कालर से पकड़ लिया और फिर अपने कराटों के दाँव पेंच से धूल चटा दी… धडाक… धड़ाक, हमें माफ़ करो दीदी… हाथ जोड़ते हुए लड़के चेन वहीं फेंक भागने लगे। आरती अरे रुको कहाँ भाग रहे हो… आगे से कभी हिम्मत मत करना कभी ऐसी हरकत करने की… ये कह वो बड़ी ख़ुशी से अपनी माँ के चैन वापस ले आयी।अब माँ को आरती पर गर्व हो रहा था।
बड़ी गर्व और स्नेह दृष्टि से अपनी बेटी के सर पर हाथ फेरते हुए मंजू। बोली… वाह आरती मुझे तुम पर फक्र है, मैं तुम्हें बिना वजह ही टोकती थी। तुम सच में निडर हो और यही तुम्हारी शक्ति और विश्वास है। इसे सदैव बनाए रखना। आज के वक़्त में यह निडरताअमूल्य तत्व है। बेटी अब कभी तुम्हें काराटे तुम्हारे शौक़ को पूरा करने के लिए कभी नहीं टोकूँगी। रात को घर पर जब सबको इस क़िस्से का पता चला, सभी आरती की बहादुरी की प्रशंसा करते न थके और सबसे आगे थी आरती की माँ।करुणा अब समझ गयी थी की लड़की का भी निडर और बहादुर होना आवश्यक है। सभी आरती की सराहना करते नहीं थक रहे थे