साईं अपने चित्त की, भूलि न कहिए कोइ।
तब लग मन में राखिए, जब लग कारज होइ॥
जब लग कारज होइ, भूलि कबहूँ नहिं कहिए।
दुर्जन हँसे न कोई, आप सियरे वै रहिए॥
कह गिरिधर कविराय बात चतुरन की ताईं।
करतूती कहि देत, आप कहिए नहि साईं॥
का मतलब
Answers
संदर्भ — यह पंक्तियां कविराय गिरधर द्वारा रचित कुंडलियों से ली गई हैं। इन पंक्तियों में प्रस्तुत छंद में गिरधर ने मन की बात अपने मन में ही रखने की सीख दी है।
व्याख्या — कविराय गिरिधर कहते हैं कि दोस्तों अपने मन की बात कभी भी किसी को मत कहो। यदि आपके मन में किसी कार्य को करने की योजना है, तो उस कार्य से संबंधित बात को अपने मन में ही रखो। जब तक आपका वह कार्य पूरा ना हो जाए। तब तक उसके बारे में किसी से भूलकर भी ना कहो। क्योंकि इस दुनिया में आपका हौसला बढ़ाने की जगह आप का मजाक उड़ाने वाले कदम-कदम पर मिल जायेंगे।
दुर्जन लोग आपकी हंसी उड़ाने से नहीं चूकेंगे। इससे आपको अपने उस लक्ष्य को प्राप्त करने में मानसिक तनाव हो सकता है। आप अपने लक्ष्य से विचलित हो सकते हैं, आप की शांति भंग हो सकती है। इसके लिए चुपचाप अपने काम को पूरा करने में लगे रहो और अपने कार्य की सफलता के द्वारा लोगों को दिखाओ। किसी को अपने राज की बात कहने से कोई फायदा नही। लोग आपकी हंसी ही उड़ायेंगे।
कविराय गिरधर कहते हैं कि यह बात चतुर लोग ही मान सकते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि इस दुनिया में मजाक उड़ाने वालों की कमी नहीं और यदि वह अपनी बात किसी से कहेंगे तो वह उनकी बात का राज ना रखकर सब जगह फैला सकता है। इसके लिए अपने राज को अपने तक ही सीमित रखो।