Hindi, asked by kashyaplmp143, 9 days ago

साईं बैर न कीजिए गुरु, पंडित, कवि, यार...
साईं बैर न कीजिए गुरु, पंडित, कवि, यार
बेटा, बनिता, पैरिया, यग्य करावन हार
यग्य करावन हार, राज मंत्री जो होई
विप्र, परोसी, वैद आपकी तपै रसोई।
कह गिरधर कविराय युगन तें यह चलि आई
इन तेरह सों तरह दिए बनि आवै साईं को
का भावार्थ बताओ​

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Answered by kundikesavarao
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Answer:

साईं बैर न कीजिए गुरु, पंडित, कवि, यार...

साईं बैर न कीजिए गुरु, पंडित, कवि, यार

बेटा, बनिता, पैरिया, यग्य करावन हार

यग्य करावन हार, राज मंत्री जो होई

विप्र, परोसी, वैद आपकी तपै रसोई।

कह गिरधर कविराय युगन तें यह चलि आई

इन तेरह सों तरह दिए बनि आवै साईं को

का भावार्थ बताओ

Explanation:

wow

Answered by franktheruler
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पद्यां का भावार्थ :

  • संदर्भ : ये पंक्तियां गिरिधर कविराय काव्य की है। हिंदी साहित्य जगत के कवि भूषण ने इसकी रचना की है। कवि भूषण रीति काल के कवि थे ।
  • प्रसंग : कवि इन पंक्तियों में बताते है कि हसने सभी से प्रेम करना चाहिए किसी से भी बैर नहीं करना चाहिए।

  • व्याख्या : कवि गिरधर का कहना है कि हमें जीवन में कभी भी कुछ लोगो से बैर नहीं करना चाहिए। ऐसे 13 लोग है। इन लोगो ने पंडित, कवि, गुरु, स्त्री यानी बनिता, बेटा, यार, पांवरिया, राज मंत्री, यज्ञ करने वाला, विप्र, वैद, पड़ोसी व रसोईयां ।
  • यदि इन लोगो से हम बैर करेंगे तो हमे ही हानि होगी।

#SPJ3

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