साई इतना दीजिये, जामें कुटुंब समाय। ... गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पायं। ... यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। ... लम्बा मारग, दूरि घर, विकट पंथ बहु मार। ... जब मैं था, तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहि। ... मेरा मुझमे कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोर।
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Photosynthesis is a process used by plants and other organisms to convert light energy into chemical energy that, through cellular respiration, can later be released to fuel the organism's metabolic activities. Wikipedia
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अर्थ – कबीर दास जी ने इस दोहे में गुरु की महिमा का वर्णन किया है। वे कहते हैं कि जीवन में कभी ऐसी परिस्थिति आ जाये की जब गुरु और गोविन्द (ईश्वर) एक साथ खड़े मिलें तब पहले किन्हें प्रणाम करना चाहिए। गुरु ने ही गोविन्द से हमारा परिचय कराया है इसलिए गुरु का स्थान गोविन्द से भी ऊँचा है।कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और|
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर||
अर्थ – कबीर कहते हैं कि वे लोग अंधे हैं जो गुरु को ईश्वर से अलग समझते हैं। अगर भगवान रूठ जाएँ तो गुरु का आश्रय है पर अगर गुरु रूठ गए तो कहीं शरण नहीं मिलेगा।
सब धरती कागज करूँ, लेखनी सब बनराय|
सात समुंदर की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि अगर सारी धरती को कागज बना लिया जाये, समस्त जंगल की लकड़ियों को कलम और सातों समुद्र के जल को स्याही बना लिया जाये तो भी गुरु की महिमा का वर्णन करना संभव नहीं है।
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।
अर्थ – इस दोहे में कबीर दास जी ने शरीर की तुलना विष के बेल से की है वहीं गुरु की अमृत की खान से। वे कहते हैं कि अपना शीश देकर भी अगर गुरु की कृपा मिले तो यह सौदा बहुत ही सस्ता है।
तीरथ गए ते एक फल, संत मिले फल चार|
सद्गुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार||
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि तीर्थ में जाने से एक फल मिलता है वहीँ किसी संत से मिलने पर चार प्रकार के फल मिलते हैं पर जीवन में अगर सच्चा गुरु मिल जाये तो समस्त प्रकार के फल मिल जाते हैं।