साजि चतुरंग सैन, अंग में उमंग धरि I सरजा सिवाजी, जंग जीतन चलत है I भूषण भनत नाद,बिहद नगारन के नदी - नद मद, गैबरन के रलत है I इस पंक्ती में से इस रस की अभिव्यंजना होती है I
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साजि चतुरंग सैन, अंग में उमंग धरि I सरजा सिवाजी, जंग जीतन चलत है I
भूषण भनत नाद, बिहद नगारन के नदी - नद मद, गैबरन के रलत है I
इस पंक्ती में से किस रस की अभिव्यंजना होती है I
रस का भेद : वीर रस
इस पक्ति में ‘वीर रस’ की अभिव्यंजना होती है।
व्याख्या :
वीर रस किसी काव्य में वहां प्रकट होता है, जब शत्रु से युद्ध करने में अथवा किसी वीरता पूर्वक कार्य करने में, असहाय या कमजोरों का उद्धार करने में अथवा धर्म का उद्धार करने में ही उत्साह का भाव मन में उमड़ता है। वह वीर रस होता है।
वीर रस का स्थाई भाव उत्साह होता है।
ऐसी कविता जिसे सुनकर चित्त की वृत्ति जागृत हो जाए वह वीर रस से भरी कविता होती है।
ऊपर दी गयी पंक्तियों में भी ऐसा ही भाव प्रकट हो रहा है, इस इन पंक्तियों में ‘वीर रस’ की अभिव्यंजना हो रही है।
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