‘ साझी परंतु अलग- अलग जिम्मेदारियां ‘ से क्या अभिप्राय है? हम इस विचार को कैसे लागू कर सकते हैं?
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"ब्राजील के रियो डे जेनेरियो शहर में 1992 में पर्यावरण संबंधी समस्याओं पर विचार करने और उनका उपाय ढूंढने के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया जिसे पृथ्वी सम्मेलन कहां गया| करीब 170 देशों ने इस में भाग लिया जो इस बात का सबूत है कि यह एक बड़ी गंभीर और विश्वव्यापी समस्या है| इस सम्मेलन में पर्यावरण प्रदूषण के संबंध में दो तरह के विचार सामने आए| उत्तरी गोलार्ध के देश जो मुख्यतः विकसित देशों की श्रेणी में आते हैं उनका मानना है कि पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने की जिम्मेदारी सारे संसार की है और इसके लिए सभी देशों को मिलकर काम करना चाहिए| इसके लिए उन्होंने विकास कार्यों पर कुछ प्रतिबंध लगाना आवश्यक बताया| यूरोप के कुछ विकसित देश चाहते हैं कि पर्यावरण एक सांझी संपदा है इसलिए उसकी सुरक्षा का उत्तरदायित्व हम सब का है और इसमें सब को समान रूप से भागीदारी करनी चाहिए| इसलिए सब देशों पर विकास संबंधित प्रतिबंध समान रूप से लागू किए जाएं|
दक्षिणी गोलार्ध के देशों ने अपना दृष्टिकोण इसके बिल्कुल विपरीत प्रकट किया| इनमें मुख्य रूप से तीसरी दुनिया के विकासशील देश सम्मिलित है जिनमें भारत भी शामिल है| इनका मानना है कि विकसित देशों ने अपनी विकास प्रक्रिया के दौरान पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान पहुंचाया है और प्रदूषित किया है| इसलिए विकसित देश ही इसके अधिक जिम्मेदार हैं| पर्यावरण को हानि विकसित देशों ने ज्यादा पहुंचाई है इसके लिए उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया जाए और इसकी क्षतिपूर्ति भी उन्हें ही करनी चाहिए| विकासशील देशों में तो विकास प्रक्रिया पूर्णतया शुरू भी नहीं हुई है| इसलिए उन्हें पर्यावरण प्रदूषण के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता न हीं उन पर किसी तरह का प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए| पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखकर जो भी प्रतिबंध लगाए जाएं उन पर निर्णय करने से पहले विकासशील देशों की सामाजिक- आर्थिक विकास की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाए| अंत में यह निर्णय लिया गया कि पर्यावरण की रक्षा की जिम्मेदारी सभी देशों की सारी जिम्मेदारी है केवल विकसित देशों की ही नहीं |परंतु उसके बचाव के प्रयासों में सभी देशों की अलग-अलग भूमिका होगी| विकास प्रक्रिया में विकासशील देशों द्वारा जो भी तौर तरीके अपनाए जाएंगे उनमें पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए छूट दी जाएगी|
"" सांझी जिम्मेदारी परंतु भूमिका अलग-अलग"" के सिद्धांत को भी देशों के आपसी सहयोग से ही लागू किया जा सकता है| विकसित और विकासशील देश दोनों मिलकर यह प्रयास करें के विकास के लिए वह ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं अपनाएंगे जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचे अभी इसकी सुरक्षा की जा सकती है| यदि विकासशील देश संसाधनों का बहरा में से प्रयोग करते हुए प्रकृति का दोहन करेंगे तू पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ेगा| अतः पर्यावरण प्रदूषण को सभी देशों के सहयोग से ही रोका जा सकता है|
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ब्राजील के रियो डे जेनेरियो शहर में 1992 में पर्यावरण संबंधी समस्याओं पर विचार करने और उनका उपाय ढूंढने के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया जिसे पृथ्वी सम्मेलन कहां गया|