सिक्ख मत के दर्शन की विशेषताओ का वर्णन कीजिए।
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sorry I CAN'T UNDERSTAND HINDI.....
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सिखमत की शुरुआत ही "एक" से होती है। सिखों के धर्म ग्रंथ में "एक" की ही व्याख्या हैं। एक को निरंकार, पारब्रह्म आदिक गुणवाचक नामों से जाना जाता हैं। निरंकार का स्वरूप श्री गुरुग्रंथ साहिब के शुरुआत में बताया है जिसको आम भाषा में 'मूल मन्त्र' कहते हैं।
१ओंकार, सतिनामु, करतापुरखु, निर्भाओ, निरवैरु, अकालमूर्त, अजूनी, स्वैभंग गुर पर्सादि॥जपु॥आदि सचु जुगादि सचु ॥है भी सचु नानक होसी भी सचु ॥ पर मूल मन्त्र समाप्त होता है।
तकरीबन सभी धर्म इसी "एक" की आराधना करते हैं, लेकिन "एक" की विभिन्न अवस्थाओं का ज़िक्र व व्याख्या श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में दी गई है वो अपने आप में निराली है।
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