Hindi, asked by sunny2727, 8 months ago

स्कूली बच्चों के लिए शारीरिक गतिविधि की आवश्यकता के बारे में लिखिए ।​

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Answered by ayannaskar3640
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भूमिका

प्रत्येक बच्चे के पास उत्प्रेरणा, शिक्षा, खेल – कूद मनोरंजन और संस्कृतिक क्रियाकलापों के माध्यम से शारीरिक, मानसिक और संवेदनात्मक विकास का अधिकार है ताकि वह अपने व्यक्तित्व का विकास अपनी सर्वोत्तम क्षमता के अनुरूप कर सके।

जैसे – जैसे बच्चों की आयु महीनों और वर्षों में बढ़ती जाती है, उनका विकास शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक रूप से होता है, उनमें समझने और सीखने की क्षमता (संज्ञात्मक कौशल) का विकास होने लगता है। हमारे बच्चों के विकास और उनकी संवृद्धि में विशेष रूप से विद्यालय पूरे की आयु से उपलब्ध कराए गए संपोषणीय परिवेश, बेहतर पोषण और उनके ज्ञान की पर्याप्त उत्प्रेरणा के माध्यम से और भी सुधार किया जा सकता है। इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण विद्यमान हैं कि विद्यालय में प्राप्त की गई अधिकांश प्रगति तीन वर्ष की आयु तक के बच्चों के संज्ञानात्मक और सामाजिक – भावनात्मक विकास पर निर्भर करती है।

हम बच्चों के पोषण स्वास्थय और शिक्षा पर जितना अधिक ध्यान देंगे उनका उतना ही अच्छा शारीरिक और मानसिक विकास होगा। आइए, बच्चों के विकास के प्रमुख पहलुओं और उनमें ग्राम पंचायत की भूमिका के बारे में जानें।

स्वास्थय और पोषण

पोषण का अर्थ है ऐसा आहार जिसे शरीर की भोजन संबंधी आवश्यकताओं के संदर्भ में उपयुक्त समझा जाता है। बेहतर पोषण तथा सन्तुलित आहार तथा साथ ही नियमित शारीरिक क्रियाकलाप बच्चे के स्वास्थय में विकास के प्रति योगदान करते हैं। ख़राब पोषण बच्चों में बीमारियों और उनकी मृत्यु होने की बढ़ती घटनाओं का एक प्रमुख कारण है। बच्चों की पोषण – संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन और कैलोरी आवश्यक है। प्रोटीन भोजन में विद्यमान और शरीर – निर्माण के अवयव हैं। जो विभिन्न अहारों में पाये जाते हैं, जैसे दालें, दूध अंडा, मछली और मांस। हमारे शरीर की मांस – पेशियाँ और अंग तथा हमारी प्रतिरक्षण प्रणाली अधिकांशत: प्रोटीन के द्वारा ही बनती है।

कैलोरी हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है तथा यह अनाज, चीनी, वसा और तैलीय आहारों में उपलब्ध होती है। एक 18 किलोग्राम भार वाले 4 से 6 वर्ष के बच्चे को प्रतिदिन अपने भोजन में 1350 ग्राम कैलोरी, 20 ग्राम प्रोटीन और 25 ग्राम वसा की आवश्यकता होती है। बढ़ती उम्र के साथ बच्चों के पोषण की आवश्यकताएं भी बढ़ती हैं।

बाल्यावस्था के प्रारंभिक वर्षों में अल्प पोषण के फलस्वरूप बच्चों के विकास में गंभीर बाधाएँ आती है तथा यह प्रक्रिया जीवन की आगामी अवस्था में भी जारी रहती है। उदहारण के लिए समय से पूरे जन्मी और जन्म के समय कम वजन की बालिका का विकास निरंतर धीमी गति से होता है तथा वह एक कुपोषित बालिका हो जाती है, जिसका किशोरावस्था में वजन अत्यंत कम होता है। फिर 18 वर्ष से पूर्व की आयु में उसका विवाह होने पर वह कम आयु की कमजोर कद – काठी वाली गर्भवती स्त्री बन जाती है। इसके उपरांत, कुपोषण और खराब शारीरिक विकास का एक अगला चक्र उसके द्वारा जन्म दिए जाने वाले बच्चे, चाहे वह लड़का हो या लड़की के साथ पुन: आरंभ हो जाता है।

अल्प पोषण स्थिति उत्पन्न होने के कुछ अन्य कारण हैं – निर्धनता, निम्न आय बाद और अकाल, नवजात शिशुओं तथा छोटे बच्चों को माता द्वारा अपना दूध न पिलाना अथवा कम दूध पिलाना और कभी – कभी संस्कृतिक प्रथाएँ जैसे कुछ अवसरों पर शिशुओं को आहार न देना, उन्हें केवल सीमित आहार ही देना, आदि।

अल्प पोषण का निवारण करने के लिए प्रमुख योजनाएँ

इसके लिए कुछ मुख्य कायर्क्रम हैं – समेकित बाल विकास कार्यक्रम, सर्व शिक्षा अभियान के तहत मध्याहन भोजन कार्यक्रम और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत विभिन्न योजनाएँ। कुछ मुख्य कार्यक्रमों और योजनाओं से उपलब्ध करवाए जाने वाले लाभ नीची तालिका में दिए गए हैं ताकि बच्चों में पोषण को बेहतर बनाया जा सके।

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