स्कूल मैगजीन के लिए तीन कविताएं लिखिए
Answers
1. प्रेम
जो रूप मुझ से लिखा गया वो सहज नैसर्गिक स्वभाव था,
प्रेम
जो रूप तुम से पढ़ा गया
वो दुसाध्य निज सम्भावना थी,
प्रेम की यह दुहरी प्रकृति,
एक तरफ
स्त्री पुरूष के आतंक से परे
मानवियता सम्प्रेषित करने की आकांक्षा,
तो दूसरी तरफ
घोर आदिम संवेग के पकते
निज गोपन में उन्मुक्त रमण की विवशता ने,
एक नैसर्गिक दैविक गुण को
अभिशप्त बनैले अनुभव में बदल दिया,
गूँगे को गुड़ से मधुमेह होने पर
इलाज में सिर्फ नजर धोनी चाहिए।
2. दरअसल प्रेम
पैर की एक खोई हुई चप्पल है
जिसे तुम कब से तलाश रहे हो,
आँगन, कोठार, पिछवाड़े , द्वार
तड़पते रहते दुखते तलवों के साथ
फिसलन के अंधेरे और सँभलने के पार
हर समय बस दिमाग में रहती वो तलाश,
मन ही मन उस मनहूस पल को कोसते हो
बेदम से रास्तों पर कंकर उछालते
बेख्याली में जलते अंगार पर चलते
बेदम हो बदहाल होकर कहीं पहुँचते हो,
तलवों के नक्शों से पते पूँछते हो
कहीं निकल कर कहीं और पहुँचते हो
ध्यान में मिलावट गर हो थोड़ी ही सही
सामने देख कर भी नहीं देखते हो,
अंतत एक दिन तुम उसे पा लेते हो
रोकी रूलाई के टूटने से पहले
फुसफुसाकर अपने होठो से लगा
हजार दुआओं के बाद पैर में डालते हो,
सनद रहे
खोई चप्पल की खोज
अक्सर जिदंगी से लम्बी हो जाती है....।
3. कभी देखी है क्या होती है ’’मृत्यु गंध’’
युगों से जंग लगे ताले के पास से कभी गुजरो
महसूस करना कोई शेष रहा स्पन्दन,
इंतजार में जड़ होती किसी विरहन को देखना
सूखी बंजर आँखों से खरपतवार निकालते हुए,
निशानियाँ फेंकने से पहले अवशेषी स्मृतियाँ गाड़ते हुए
दिवागंत सैनिक की माँ की आवाज सुनना,
अंतिम सफर से ठीक पहले
नाभि चक्र में अटके
हारा के शेष जुडाव को
झटक कर तोड़ने से ही
उपजती है ये विशेष गंध,
चिता दहकने से पहले ही कितना कुछ दहक चुका होता है,
संगम के घाट पर बहने वालों में अक्सर
सूखी सरस्वती भी ढूढ़े से नहीं मिलती।