सूक्ष्म प्रवर्धन की विधियों के नाम व उनकी उपयोगिता बताइए।
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Explanation:
कली द्वारा
कुछ पौधे ऐसे होते हैं जिनमें पत्तियों के किनारे कटे होते हैं और इन्हीं किनारों के कक्ष में सहायक कलियाँ निकलती हैं। ये कलियाँ पौधे से कुछ समय के बाद अलग हो जाती हैं और जमीन पर गिर पड़ती हैं। हवा इत्यादि के झोंकों द्वारा ये दूर दूर तक जमीन पर फैल सकती हैं। उपयुक्त समय पाकर प्रत्येक कली एक नए पौधे को उत्पन्न करती है। इस प्रकार का प्रवर्धन ब्रायोफिलम (Bryophyllum) में पाया जाता है। बीगोनिया (Begonia) और कलेंको (Kalanchoe) की पत्ती की नस तथा पत्ती के डंठल से सहायक कलियाँ निकलती हैं। कुछ समय बाद पौधे से ये अलग होकर तथा जमीन पर गिरकर नए पौधे को जन्म देती हैं।
जेमाओं (Gemmae) द्वारा
कुछ ब्रायोफाइटा के पौधों में, जैसे मॉसों (mosses) तथा लिवरवर्टों (liverworts) में, पौधे के ऊपर विशिष्ट प्रकार के उभार निकल आते हैं। इन उभारों को जेमा (gemma) कहते हैं। ये जेमा उपयुक्त समय पाकर नए पौधे पैदा करते हैं।
पत्ती द्वारा
कुछ पौधों में पत्तियों द्वारा प्रवर्धन होता है, जैसे वॉकिंग फर्न (Walking fern, Adiantum candetum) और पॉलिपोडियम (Polypodium sp) में। इन पौधों में पत्तियों एक लंबे डंठल में लगी रहती हैं जब इन पत्तियों के अग्रभाग जमीन के संसर्ग में आते हैं तो जमीन पर लग जाते हैं। इन्हीं भागों से जड़ें निकल कर मिट्टी में प्रवेश करती हैं। इन्हीं जड़ों के ऊपरी भाग से नई कलियाँ निकलती हैं, जो नए पौधे बनाती हैं। इस प्रकार एक प्रमुख पौधे से उसके चारों तरफ उसी तरह के छोटे छोटे पौधे पैदा हो जाते हैं।
भूमि में रहनेवाले तने द्वारा
कुछ पौधों में पौधे का मुख्य भाग जमीन के अंदर पड़ा रहता है। इस भाग को आंतभौंम तना (underground stem) कहते हैं। ये तने कई प्रकार के होते हैं, जैसे ट्यूबर, जो आलू में पाया जाता है, शल्व कंद (bulb) और घनकंद (corm), जो घुइयाँ, बंडा और सूरन में पाए जाते हैं। kपौधों के इन भागों में आहार जमा रहता है। ये भाग जमीन में प्रतिकूल वातावरण में प्रसुप्त अवस्था में पड़े रहते हैं। अनुकूल वातावरण प्राप्त होने पर पौधों के इन भागों से नई कलियाँ निकल आती हैं। इन कलियों से नए पौधों का जन्म होता है, जो समय पाकर प्रौढ़ पौधे बन जाते हैं।
कुछ तने ऐसे होते हैं जो मिट्टी के अंदर रहते हैं। इस प्रकार के तनों को प्रकंद (Rhizome) कहते हैं। इस प्रकार के तने मुख्यत: ग्रामिनी (Grainere) कुल के पौधों में पाए जाते हैं। इनमें मूल तना मिट्टी के अंदर बढ़ता रहता है। इस तने पर गाँठें होती हैं। कभी कभी ये तने जमीन के ऊपर रेंगते हुए बढ़ते हैं। ऐसे तने मुख्यत: दूब घास तथा अन्य घासों में पाए जाते हैं। इन तनों की गाँठों से जड़े तथा कलियाँ निकलती हैं, जो नए पौधों को जन्म देती हैं।
घासों के अतिरिक्त इस प्रकार के तने लेग्युमिनोसी (Leguminosae) कुल के कुछ पौधों में पाए जाते हैं, जैसे 'ऊँट काँटा' (Camel thorn) या जवास (Alhagi camelorum)। इस पौधे में प्रंकद (भूमिगत तना) मिट्टी में ५ से १० फुट नीचे तक पाया जाता है। भूमिगत तने पर गाँठें होती हैं। अनुकूल समय में इन्हीं गाँठों से नई जड़ें तथा वर्धन कलियाँ निकलती हैं, जो बाद में मिट्टी की सतह से ऊपर निकल आती हैं और नये पौधों का रूप धारण कर लेती हैं।
पत्रप्रकलिका (bulbils) द्वारा
यह एक प्रकार की विशिष्ट कली हैं, जो भिन्न भिन्न पौधों के भिन्न भिन्न भागों पर उगती है, उदाहरण के लिपे ग्लोबा बल्बिफेरा (Globba bulbifera) तथा ऐलियम सेटाइवम (Allium sativum)। पुष्पगुच्छ के, या पुष्पक्रम (inflorescence) में नीचे के फूल एक बहुकोशिकीय रचना के रूप में परिणत हो जाते हैं, जिनको पत्रप्रकलिका कहते हैं। ये जमीन पर गिरकर पुन: पौधे को जन्म देते हैं। इस प्रकार की रचनाएँ अन्य अनेक पौधों में पाई जाती हैं।