Social Sciences, asked by rk1574195, 9 months ago

सूक्ष्म शरीर में कितने तत्व है​

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Answered by harshhero77
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Explanation:

सूक्ष्म पोषक तत्व या सूक्ष्मपोषकतत्व वो पोषक तत्व हैं जिनकी आवश्यकता जीवन भर लेकिन, बहुत कम मात्रा में पड़ती है। स्थूल पोषक तत्वों के विपरीत, मानव शरीर द्वारा यह एक बहुत कम मात्रा में लिया जाने वाला आवश्यक खनिज आहार है (आमतौर पर 100 माइक्रोग्राम/दिन से भी कम)। सूक्ष्म पोषक तत्वों में लोहा, कोबाल्ट, क्रोमियम, तांबा, आयोडीन, मैंगनीज, सेलेनियम, जस्ता और मोलिब्डेनम आदि शामिल हैं। (यहाँ प्रयुक्त "खनिज" भूगोल मे प्रयुक्त खनिज से अलग है)।

विटामिन कार्बनिक रसायन होते हैं, जिनका सेवन किसी प्राणी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, पर इसका संश्लेषण प्राणी स्वयं नही कर सकते इसलिए इन्हें, उन्हें अपने आहार से प्राप्त करना पड़ता है। हमारा शरीर 33 प्रकार के तत्वों से मिल कर बना है जो हमे आहार से प्राप्त हो जाते है

MUJHE LAGTA H KI YEH APKI SAHAAYATA KAREGA AGARA HAAN TOH MUJHE BRAINLLIEST MARK KARNE KI KRIPA KARE

Answered by syed2020ashaels
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सूक्ष्म शरीर वो होता है जिसमे ज्ञानेंद्रिय, मन, बुद्धि, अहंकार आदि सब गुण होते है उसे ही सूक्ष्म शरीर कहते है। ये आत्मा को सृष्टि के आरंभ मे प्राप्त होता है और सृष्टि के अंत तक रहता है। अगर इसी बीच मे आत्मा उस सूक्ष्म शरीर से अलग हो जाए तो उसे मोक्ष कहते है।

सूक्ष्म शरीर 17 तत्व / घटकों से मिलकर बना है। यह सूक्ष्म शरीर ही पुनर्जन्म का कारण है, क्योंकि सूक्ष्म शरीर मन प्रधान है, उसकी वासना नहीं मरती है। मनुष्य जन्म लेता है, मरता है फिर जन्म लेता है। इस प्रकार जन्म-मरण का यह चक्र चलता रहता है, क्योंकि न अविद्या मरती है और न ही मन अर्थात इन्द्रियजनित वासनाएं मरती है। इसी कारण वह हर जन्म में 'आशा-तृष्णा' में फंसा रहता है। वस्तुत: 'अविद्या' ही हमारे दु:ख का एकमात्र कारण है। अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश। 'पतंजलि योगसूत्र' में कहा गया है कि ये पंचक्लेश ही पांच बंधनों के समान हमें इस संसार में बांधे रखते है। इनमें से अविद्या ही कारण है और शेष चार क्लेश इसके कार्य है। आत्मा तो आनंदस्वरूप है। वह परमात्मा का अंश है, अत: प्रत्येक जीव ब्रह्म है। बाह्य एवं अंत: प्रकृति को वशीभूत करके अपने इस ब्रह्मभाव को व्यक्त करना ही जीव का चरम लक्ष्य है, जिसे वह अविद्या के कारण भूल गया है। अविद्या के बंधन से छूटकर ही हम जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पा सकते है।

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