संकेत बिन्दुओं के आधार पर समसामयिक एवं व्यावहारिक जीवन से जुड़े हुए विषयों पर 200 से 250 शब्दों में निबंध - लेखन
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वास्तविक जीवन के मुद्दे सकारात्मक युवाओं के लिए प्रासंगिकता। ये पाठ्यक्रम में पारंपरिक शैक्षणिक सामग्री को कम करने या अनदेखा करने के लिए दिए गए कुछ शीर्ष कारण हैं, खासकर जब यह अधिक पुराना हो। शेक्सपियर या होमर की किसी न किसी काउंसिल की संपत्ति से बढ़ रहे युवाओं के लिए क्या प्रासंगिकता है, शिक्षा-सामाजिक-कार्य के पैरोकार बयानबाजी करते हैं।
वास्तव में, महान साहित्य की तुलना में संघर्ष के जीवन के लिए कुछ भी अधिक प्रासंगिक नहीं हो सकता है। महान साहित्य का उल्लेख करते हुए कि हम सबसे बड़ी शक्ति और अंतर्दृष्टि के साथ प्रस्तुत सबसे कठिन मुद्दों को पाते हैं। युवाओं के लिए इस महान विरासत को अनलॉक करना उन्हें जीवन की सबसे कठिन चुनौतियों को प्रतिबिंबित करने के तरीके देता है जो उन्हें issues किशोर मुद्दों ’पर एक हजार नागरिकता पाठ या कार्यशालाओं से नहीं मिल सकता था।
मानव जीवन असीम रूप से विभिन्न है, लेकिन महान साहित्य सदियों से चला है क्योंकि यह उन चुनौतियों के साथ शक्तिशाली रूप से जुड़ा हुआ है जिनका हम सभी सामना करते हैं: मृत्यु; नुकसान; समय बीतने के; रोमांटिक आकर्षण के आकर्षण और खतरे। किशोर सोच सकते हैं कि वे इन चीजों का अनुभव करने वाले ब्रह्मांड के पहले लोग हैं, लेकिन महान साहित्य में एक गहन विसर्जन उन्हें सिखाएगा कि वे अकेले नहीं हैं। वे मानव जाति का हिस्सा हैं, जो अनादि काल से इन महान सवालों से जूझ रहा है।
समसामयिक एवं व्यावहारिक विधियों से अभिप्राय-
पाठ्य सामग्री क्रियाओं के सफल आयोजन व उनके माध्यम से जीवन मूल्यों की पुनः स्थापना करने का दायित्व निभाना व्यावहारिक विधियों का कार्य है। समाज भी हमसे इसकी अपेक्षा रखता है, व हमें दृढ़ संकल्प के साथ उत्तरदायित्व पूर्ण व्यवहार करके कर्तव्य पालन में पीछे नहीं रहना चाहिए। शिक्षक छात्रों के जीवन में मूल्यों की प्रतिष्ठा भर सकते हैं। कुछ उपयोगी पाठ्य-क्रियाएँ निम्न हैं –
- समाज एवं मूल्यों के विकास में खेल की भूमिका उल्लेखनीय होती है। खेलते समय उचित खेल भावना के प्रदर्शन पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए। खेल के समय अनुशासित रहकर वह प्रारम्भिक निराशाओं के बावजूद ईर्ष्या, घृणा, द्वेष, चालबाज, हिंसा आदि। शारीरिक व्यायाम तथा योग क्रियाओं के माध्यम से स्वास्थ्य सहयोग, व्यवस्था, सौन्दर्यबोध, शालीनता आदि मूल्य विकसित किए जा सकते हैं.
- सभी विद्यालयों में एक प्रार्थना स्थल होता है जहाँ सभी अध्यापक एवं छात्र एकत्र होकर रुचिपूर्ण ढंग से लय व गति के साथ याचना करते हैं। समय-समय पर विद्यार्थियों को प्रार्थना के अर्थ एवं उसमें निहित विचारों की उपयोगिता को स्पष्ट किया जाना चाहिए।
- भारत में विविधता है, यहाँ पर विभिन्न धर्मों एवं मतों के अनुयायी रहते हैं, तथा वे अनेक पर्वों एवं उत्सवों का आयोजन करते हैं। इसके अलावा कुछ राष्ट्रीय पर्व भी आयोजित किए जाते हैं। इन सब के माध्यम से विद्यार्थियों में भेदभाव रहित वातावरण विकसित करने, प्रेमनिष्ठा, दया, परोपकार, त्योग, धर्मनिरपेक्षता आदि मूल्य विकसित किए जाने चाहिए। इन मूल्यों के सशक्त संस्कार उत्पन्न करने के प्रयास करके छात्रों को दिशा-निर्देशित किया जाना परमावश्यक है।
- प्रत्येक विद्यालय तथा प्रत्येक कक्षा में एक छात्र संसद बनाई जा सकती है, इनके क्रिया कलापों में गति एवं कार्य करने की प्रवृत्ति होती है। छात्रों को समूह में तथा आपस में मेल-जोल बढ़ाना चाहिए।
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