Hindi, asked by tavishagupta50, 7 days ago

संकेत बिंदुओं के आधार पर दिए गए विषय पर 100-150 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए । (1) वन और पर्यावरण का सम्बन्ध संकेत-बिंदु वन प्रदूषण निवारण में सहायक वनों की उपयोगिता, वन संरक्षण की आवश्यकता, वन संरक्षण के उपाय ।​

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Answered by devatwalpiyush
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Answer:

वन और पर्यावरण–वन और पर्यावरण का गहरा संबंध है। ये सचमुच जीवनदायक हैं। ये वर्षा लाने में सहायक होते हैं और धरती की उपजाऊ-शक्ति को बढ़ाते हैं। वन ही वर्षा के धारासार जल को अपने भीतर सोखकर बाढ़ का खतरा रोकते हैं। यही रुका हुआ जल धीरे-धीरे सारे पर्यावरण में पुनः चला जाता है। वनों की कृपा से ही भूमि का कटाव रुकता है। सूखा कम पड़ता है तथा रेगिस्तान का फैलाव रुकता है।

प्रदूषण–निवारण में सहायक–आज हमारे जीवन की सबसे बड़ी समस्या है-पर्यावरण-प्रदूषण। कार्बन डाइऑक्साइड, गंदा धआँ, कर्णभेदी आवाज, दूषित जल-इन सबका अचूक उपाय है-वन-संरक्षण। वन हमारे द्वारा छोड़ी गई गंदी साँसों को, कार्बन डाइऑक्साइड को भोजन के रूप में ले लेते हैं और बदले में हमें जीवनदायी ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। इन्हीं जंगलों में असंख्य, अलभ्य जीव-जंतु निवास करते हैं जिनकी कृपा से प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। आज शहरों में लगातार ध्वनि-प्रदूषण बढ़ रहा है। वन और वृक्ष ध्वनि-प्रदूषण भी रोकते हैं। यदि शहरों में उचित अनुपात में पेड़ लगा दिए जाएँ तो प्रदूषण की भयंकर समस्या का समाधान हो सकता है। परमाणु ऊर्जा के खतरे को तथा अत्यधिक ताप को रोकने का सशक्त उपाय भी वनों के पास है।

वनों की अन्य उपयोगिता–वन ही नदियों, झरनों और अन्य प्राकतिक जल-स्रोतों के भंडार हैं। इनमें ऐसी दुर्लभ वनस्पतियाँ सरक्षित रहती हैं जो सारे जग को स्वास्थ्य प्रदान करती हैं। गंगा-जल की पवित्रता का कारण उसमें मिली वन्य औषधियाँ ही हैं। इसके अतिरिक्त वन हमें लकड़ी, फूल-पत्ती, खाद्य-पदार्थ, गोंद तथा अन्य सामान प्रदान करते हैं।

वन–संरक्षण की आवश्यकता–दुर्भाग्य से आज भारतवर्ष में केवल 23% वन रह गए हैं। अंधाधुंध कटाई के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है। वनों का संतुलन बनाए रखने के लिए 10% और अधिक वनों की आवश्यकता है। जैसे-जैसे उद्योगों की संख्या बढती जा रही है, वाहन बढ़ते जा रहे हैं, वैसे-वैसे वनों की आवश्यकता और अधिक बढ़ती जाएगी।

Answered by akarshverma1310
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Answer:

Explanation:

पृथ्वी हमारा निवास-स्थान है। हमारे जीवन में इसकी उपयोगिता एक माँ के समान है। भारत में तो इसे माँ की ही संज्ञा दी गई है। धरती माँ की भांति हमारा पालन-पोषण करती है। हमारी हर छोटी-बड़ी आवश्यकताओं को पूरा करती है। हम उसके बालक के समान हैं। इस पृथ्वी का महत्वपूर्ण अंग है वृक्ष। इनके माध्यम से हमारी बहुत-सी आवश्यकताएँ पूरी होती हैं। पेड़-पौधे, पृथ्वी माँ की तरफ़ से दी गई अमूल्य धरोहर है।

पेड़-पौधे से होने वाले लाभों का यदि आंकलन किया जाए, तो वे अद्वितीय हैं। पेड़-पौधे मनुष्य के लिए जीवनदायनी ऑक्सीजन का निर्माण करते हैं। वे वातावरण मैं विद्यमान कार्बनडाई ऑक्साइड को ग्रहण कर ऑक्सीजन विसर्जित करते हैं। इस तरह ये वातावरण को शुद्ध बनाते हैं। वातावरण से हानिकारक गैस कार्बनडाई ऑक्साइड को ग्रहण करने के कारण वायु और वातावरण शुद्ध हो जाता है। कार्बनडाइ ऑक्साइड की अधिकता के कारण वातावरण का तापमान बढ़ता है। अत: ये पृथ्वी के कार्बनडाइ ऑक्साइड का अवशोषण कर तापमान को नियंत्रण करने का कार्य भी करते हैं। मनुष्य की भोजन, औषधी, वस्तु निर्माण संबंधी आदि आवश्यकताओं को भी पूरा करते हैं। पेड़-पौधे की पत्तियों से अच्छी खाद बनाई जाती है। इनसे प्राप्त होने वाली लकड़ी प्राप्त होती है। इनसे दवाइयाँ बनाई जाती है। पेड़ों की लकड़ी से विभिन्न तरह के फर्नीचरों का निर्माण भी किया जाता है। पेड़-पौधे का महत्वपूर्ण कार्य होता है मिट्टी के कटाव को रोकना। इनकी जड़ें धरती में बहुत गहराई तक होती हैं। वे अपनी जड़ों से मिट्टी को बाँधे रखते हैं। इसके कारण बरसात के समय मिट्टी (मृदा) का कटाव नहीं होता और उपजाऊ मिट्टी का संरक्षण हो जाता है।

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