सिकुड़ते वन : बिगड़ता पर्यावरण = सिकुड़ने के कारण पर 200 से 250 शब्दों में निबंध लेखन
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प्रकृति ने जल और जंगल के रूप में मनुष्य को दो ऐसे अनुपम उपहार दिए हैं जिनके सहारे कई दुनिया में कई सभ्यताएं विकसित हुई हैं, लेकिन मनुष्य की खुदगर्जी के चलते इन दोनों ही उपहारों का तेजी से क्षय हो रहा है।
पानी के संकट को स्पष्ट तौर पर दुनियाभर में महसूस किया जा रहा है और कई विशेषज्ञ चेतावनी दे चुके हैं कि अगला विश्वयुद्ध अगर हुआ तो वह पानी को लेकर ही होगा। जिस तेजी से पानी का संकट विकराल रूप लेता जा रहा है, कमोबेश उसी तेजी से जंगलों का दायरा भी सिकुड़ता जा रहा है।
जब मनुष्य ने जंगलों को काटकर बस्तियां बसाई थीं और खेती शुरू की थी, तो वह सभ्यता के विस्तार की शुरुआत थी। लेकिन विकास के नाम पर मनुष्य की खुदगर्जी के चलते जंगलों की कटाई का सिलसिला मुसलसल जारी रहने से अब लग रहा है कि अगर जंगल नहीं बचे तो हमारी सभ्यता का वजूद ही खतरे में पड़ जाएगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि दुनियाभर में जंगल अब बहुत तेजी से खत्म हो रहे हैं। पूरी दुनिया के जंगलों का 10वां भाग तो पिछले 20 सालों में ही खत्म हो गया है। यह गिरावट लगभग 9.6 फीसदी के आसपास है। जंगलों की यह कटाई और छंटाई किसी खेती या बागवानी के लिए नहीं, बल्कि नए-नए नगर बसाने और उससे भी कहीं ज्यादा खनन के लिए हो रही है।
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