Hindi, asked by khevandasmanikpuri34, 5 months ago

सुकर्म ,ज्ञान, ज्योति से स्वदेश जगमगा उठे,
कि स्वाश्रयी समाज हो कि प्राण-प्राण गा उठे।
सुरभि मनुष्य मात्र में भरे विवेक ज्ञान की,
सहानुभूति, सख्य, सत्य, प्रेम, आत्मदान की।​

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Answered by charan1947
0

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what do you want to know

Answered by sambhavkumar659
3

Answer:

अभय चरण बढ़े समान फूल और शूल पर, कि हो समान स्नेह, स्वर्ण, राशि और धूल पर। सुकर्म, ज्ञान, ज्योति से स्वदेश जगमगा उठे, कि स्वाश्रयी समाज हो कि प्राण-प्राण गा उठे। ... प्रवाह स्नेह का प्रत्येक प्राण में पला करे, प्रदीप ज्ञान का प्रत्येक गेह में जला करे। उठो, कि बीत है चली प्रमाद की महानिशा, उठो, नई किरण लिए जगा रही नई उषा

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