सूखी डाली एकांकी का प्रकाशन वर्ष क्या है । प्रकाशन बताए
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‘सूखी डाली’ एकांकी ‘उपन्द्रनाथ अश्क’ द्वारा रचित एकांकी है, जो 1942 में प्रकाशित हुआ था।
व्याख्या :
‘सूखी डाली’ एकांकी में नई और पुरानी पीढ़ी के संघर्ष का मार्मिक चित्रण मिलता है, ‘सूखी डाली’ एकांकी संयुक्त परिवार की पृष्ठभूमि में रचा दिया एकांकी है, जिसमें संयुक्त परिवार में उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है।
इस एकांकी में दो पीढ़ियों के बीच संघर्ष भी दर्शाया गया है। जहाँ पर मूलराज के रूप में 72 वर्षीय एक वृद्ध हैं, तो बेला के रूप में उनकी पोते की पत्नी और इंदु के रूप में उनकी पोती नई पीढ़ी के प्रतिनिधि के रूप में हैं।
इस एकांकी के माध्यम से यह बताने की प्रयास किया गया है कि यदि घर का मुख्य सदस्य परिपक्व हो तो वह अपनी सूझबूझ से घर को बिखरने से बचा सकता है। लेखक का कहने का मुख्य उद्देश्य है कि घर का मुख्य नियंत्रण एक परिपक्व और समझदार व्यक्ति के हाथ में होना चाहिए। दादा मूलराज के पोते की पत्नी बेला की छोटी बहू है जो एक बड़े समृद्ध परिवार की कन्या है। उसे अपने मायके के समृद्ध होने का अभिमान है, वह हर बात की तुलना अपने मायके के परिवार से करना चाहती है। इस कारण उसका अपनी ननद इंदू से संघर्ष भी होता है, और परिवार बिखरने की स्थिति तक पहुंच जाता है। लेकिन दादा मूलराज आज अपनी सूझबूझ भरे प्रयास से परिवार को बिखरने से बचा लेते हैं। दो पीढ़ियों के बीच संघर्ष एक सुखद परिणाम के साथ समाप्त होता है।