सूखी डाली एकांकी में दादाजी की उम्र आयु कितनी थी
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सामाजिक एकाकीकारों में उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। इनका जन्म 14 दिसम्बर 1910 को जलन्धर में हुआ था। अश्क जी ने एक ऐसे समाज की कल्पना की है।जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार प्राप्त हों । अपने एकांकियों में अश्क जी ने दहेज, बेमेल विवाह और संयुक्त परिवार प्रणाली आदि पर भी चोटें की हैं। ‘लक्ष्मी का स्वागत’, ‘पापी’, ‘ अधिकार का रक्षक’ और ‘सूखी डाली’, आदि एकांकी अविस्मरणीय हैं। इसके अतिरिक्त ‘वेश्या’ और ‘कामदा’ नामक एकांकी भी सुन्दर हैं। अश्क जी ने जीवन की विषमताओं और विसंगतियों को अपने नाटकों में कुरेदा है। अश्क जी के प्रत्येक एकांकी में प्रमुख पात्र के मन में तीव्र असंतोष या विषाद का चित्रण हुआ है यही हमें ‘सूखी डाली’ में भी देखने को मिलता है। अश्क जी की भाषा नाटकों के लिए उपयुक्त भाषा है। छोटे-छोटे सरल संवादों से कथा विकसित होती है और पात्रों के चरित्र भी स्पष्ट होते चले जाते हैं। लेखक की लेखनी का कौशल है कि पात्रों के मन की बात स्वतः ही बाहर झलक उठती है। अभिनय की दृष्टि से भी अश्क जी के एकांकी उत्कृष्ट कोटि के एकांकियों में गिने जाते हैं क्योंकि उनमें अधिक साज-सज्जा और नाटकीय दृश्यों का झमेला नहीं होता। अश्क जी ने कुछ प्रहसन भी लिखे हैं। इन प्रहसनों में ‘जोंक’, ‘आपसी समझौता’ और ‘विवाह के दिन’ उल्लेखनीय हैं। अश्क जी के नाटकों में आदर्शवादिता लक्षित नहीं होती। दुखांत एकांकियों की प्रवृत्ति अश्क जी में भी है और इस प्रकार का अंत प्रायः सर्वश्रेष्ठ पात्र के भाग्य पर ही काली छाया बनकर मॅडराता है। इस प्रवृत्ति का कारण शायद अश्क जी का यही विचार है कि संसार का ढाँचा बिगड़ा हुआ है जिसमें सत्य और आदर्श का अनुयायी ही सदैव पीसा जाता है। अश्क जी ने साम्यवादी समाज की स्थापना का स्वप्न देखते हुए अपने नाटकों एवं एकांकियों में पूँजीवादी मनोवृत्तियों की आलोचना की है। इस प्रकार हिन्दी एकांकी के प्रमुख शिल्पियों में अश्क जी का नाम अत्यंत आदर से लिया जाता है। 19 जनवरी 1996 में इलाहाबाद में इनका देहावसान हो गया।