सुख के माथे सिल परै, नाम हृदय से जाय।
बलिहारी वा दुक्ख की, पल-पल नाम जपाय।।
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सुख के माथे सिल परो ,नाम हृदय से जाये , बलिहारी उस दुःख की ,कि पल पल नाम रटाये। चाहे अमृत की वर्षा हो लेकिन बैंत के वृक्ष में फल और फूल नहीं लगते। ऐसे ही जो (प्रवचन ,संत वाणी ,भगवान् की ओर ले जाने वाले रास्ते की बातें )सुनना ही नहीं चाहते उन पर संत या कोई और भी फिर क्या कृपा करेगा।
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