सूखे की स्थिति पर संपादकीय लेख
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आदमी की स्थिति 'जैसे सूखे सावन, वैसे भरे भादों' जैसी हो गयी है. वर्षा ऋतु आती है, बादल भी आते हैं, कुछ बूंदाबांदी भी होती है, परन्तु जितनी अपेक्षा होती है, उतनी वर्षा नहीं होती है. कहीं-कहीं होती है, जहां उसकी उतनी आवश्यकता नहीं होती है. पहाड़ों में बादल फट जाते हैं, रेगिस्तान में बाढ़ आ जाती है; परन्तु मैदानी खेतों में, जहां वर्षा की सबसे अधिक आवश्यकता होती है, वहां वर्षा ऋतु में बादल किसानों से आंख-मिचौली खेलते रहते हैं. वहां बादल तो नहीं रोते, परन्तु किसान और मजदूर के रोने के लिए आंसुओं के कुएं खोदकर चले जाते हैं.
सावन में स्त्रियों को विरह भी बहुत सताता है. विरह की मारी स्त्रियों के लिए वर्षा से कोई लेना-देना नहीं होता. वह तो बस बादलों को उमड़ता देखकर अपने प्रिय की यादों में खो जाती हैं. बादल जब उड़ते हुए धरती के नजदीक आते हैं तो वह उनमें अपने प्रियतम का प्रतिरूप देखती हैं, और सोचती हैं, काश, उनके साजन इन्हीं बादलों में कहीं छिपे बैठे हों और अचानक वर्षा की बूंदों की तरह उनके आंगन में टपक पड़ें और वह लपककर उन्हें अपने आलिंगन में समेट लें. फिर कहीं जाने न दें.
सावन में स्त्रियों को विरह भी बहुत सताता है. विरह की मारी स्त्रियों के लिए वर्षा से कोई लेना-देना नहीं होता. वह तो बस बादलों को उमड़ता देखकर अपने प्रिय की यादों में खो जाती हैं. बादल जब उड़ते हुए धरती के नजदीक आते हैं तो वह उनमें अपने प्रियतम का प्रतिरूप देखती हैं, और सोचती हैं, काश, उनके साजन इन्हीं बादलों में कहीं छिपे बैठे हों और अचानक वर्षा की बूंदों की तरह उनके आंगन में टपक पड़ें और वह लपककर उन्हें अपने आलिंगन में समेट लें. फिर कहीं जाने न दें.
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