सूखी मिट्टी से कोई भी
मूरत न कभी बन पाएगी
जब हवा चलेगी यह मिट्टी
खुद अपनी धूल उड़ाएगी
इसलिए सजल बादल बनकर बौछार के छींटे देता चल यह दुनिया सूखी मिट्टी है तू प्यार के छींटे देता चल ।
हँसते- खिलते फूलों को ही
जग की आँखों का प्यार मिला
अँधियारे में जलने वाले हर दीपक को सत्कार मिला
जो अपने से बाहर आया
उसको सारा संसार मिला
जिसने मरना सीखा उसको ही जीने का अधिकार मिला
(क) सूखी मिट्टी से मूरत क्यों नहीं बन सकती ?
(ख) दुनिया की सूखी मिट्टी को किसकी आवश्यकता है?
(ग) सारा संसार किसे मिलता है?
(घ) जग की आँखों का प्यार किसे मिला?
(ङ) 'अधिकार' शब्द में से उपसर्ग और मूल शब्द अलग कीजिए ।
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