सुख विश्वास से उत्पन्न होता है। सुख जड़ता से भी उत्पन्न होता है। पुराने जमाने में लोग सुखी इसलिए थे कि ईश्वर की सत्ता में उन्हें विश्वास था। उस जमाने के नमूने आज भी हैं . मगर वे महानगरों में कम मिलते हैं। उनका जन्म घट गांवों कस्बों या छोटे छोटे नगरों में है। इनकी बहुत अधिक असंतुष्ट ना होने का कारण यह है कि जो चीज उनके बस में नहीं है उसे भी अदृश्य की इच्छा छोड़कर निश्चिंत हो जाते हैं। इसी प्रकार सुखी वे लोग भी होते हैं जो सच्चे अर्थों में जड़ता वादी हैं क्योंकि उनकी आत्मा पर कटगोदी चिड़िया चोंच नहीं मारा करती किंतु जोना जड़ता को स्वीकार करता है और ना ही ईश्वर के अस्तित्व को तथा जो पूरे तन मन से न तो जड़ता का त्याग करता है और ना ही स्वर की अस्तित्व का असली वेदना उसी संदेह वादी मनुष्यता की वेदना है। पश्चिम का आधुनिक बोध इसी पीड़ा से त्रस्त है। वह न तो मनुष्य भैंस की तरह खा पीकर संतुष्ट रह सकता है ने अदृश्य का अवलंब लेकर चिंता मुक्त हो सकता है। इस अभागे मनुष्य के हाथ में ना तो लोग रह गया है ना पर लोग। लोग इसलिए नहीं है कि वह महल बनकर जीने को तैयार नहीं है और परलोक इसलिए नहीं कि विज्ञान उसका समर्थन नहीं करता। निदान संदेश के झटके खाता हुआ यह आदमी दिन रात व्याकुल रहता है और रह रह कर आत्महत्या की कल्पना करके अपनी व्याकुलता का रेचन करता रहता है। गांव के लोग संतुष्ट क्यों हैं?
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kafi bada hai yeh padhne ka bhi dil na ho raha mera
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