Hindi, asked by Anonymous, 5 months ago

साखियों (कबीरदास) का सारांश
someone help me pls ​

Answers

Answered by Sнιναηι
2

⭐ here's your answer ⭐

Summary

▶️इन दोहों में कबीर मानवीय प्रवर्तियों को प्रस्तुत करते हैं। पहले दोहे में कवि कहते हैं कि मनुष्य की जाति उसके गुणों से बड़ी नहीं होती है। दूसरे में कहते हैं कि अपशब्द के बदले अपशब्द कहना कीचड़ में हाथ डालने जैसा है। तीसरे दोहे में कवि अपने चंचल मन व्यंग कर रहें हैं कि माला और जीभ प्रभु के नाम जपते हैं पर मन अपनी चंचलता का त्याग नहीं करता। चौथे में कहते हैं कि किसी को कमजोर समझकर दबाना नहीं चाहिए क्योंकि कभी-कभी यही हमारे लिए कष्टकारी हो जाता है। जैसे हाथी और चींटी। एक छोटी सी चींटी हाथी को भी बहुत परेशान कर सकती है। पाँचवे दोहे का भाव यह हैं कि मनुष्य अपनी मानसिक कमजोरियों को दूर करके संसार को खुशहाल और दयावान बना सकता है।◀️

hope it helps you

thanks ☺️

Answered by najamsultan2010
0

Answer:

इन साखियों में कबीरदास जी कहते हैं कि हमें सज्जन पुरुष को उसके ज्ञान के आधार पर ही परखना चाहिए। अर्थात् हमें व्यक्ति की पहचान उसके बाहरी रूप से न कर के उसके अंतरिक गुणों के आधार पर करना चाहिए। हमें अगर कोई बुरी बात कह रहा है तो हमें ध्यान नहीं देना चाहिए और उसे पलटकर बुरा भी नहीं कहना चाहिए नहीं तो बात बढ़ती जाती है।

Similar questions