सुखमापतितं सेव्यं दुखमापतितं तथा।
चक्रवत् परिवर्तन्ते दुखानि च सुखानि च
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सुखमापतितं सेव्यं दुखमापतितं तथा।
चक्रवत् परिवर्तन्ते दुखानि च सुखानि च
अर्थ ➲ जिस तरह हम अपने जीवन में आने वाले सुखों का उपभोग पूरी तरह आनंद उठाकर करते हैं, उसी तरह हमें हमें अपने जीवन में आने वाले दुखों को भी स्वीकार करना चाहिए। सुख और दुख जीवन के दो चरण हैं, जो आते-जाते रहते हैं।
✎... अर्थात हमें सुख और दुख दोनों को समान भाव से स्वीकार करना चाहिए। यदि हम सुखों का उपभोग करने की कामना रखते हैं और उनका आनंद उठाकर उपभोग भी करते हैं, तो हमें दुख आने पर उनको भी चुनौती की तरह स्वीकार करके उनका सामना करना चाहिए। सुख के बाद दुख आना है और दुख के बाद सुख यही जीवन का चक्र है।
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