सेल्फी: सही या गलत , निबंध
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सेल्फी सही या गलत
मोबाइल फोन के चमत्कारी विकास के बाद शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो सेल्फी शब्द से परिचित न हो। बीते कुछ सालों में मोबाइल फोन में लगे सामने के कैमरे ने सेल्फी को अत्यधिक बढ़ावा दिया है। युवा वर्ग में चाहे वह लड़की हो या लड़का इसका आकर्षण बहुत तेजी से बढ़ा है। सेल्फी के क्रांतिकारी विकास के लिए मोबाइल के सामने के • कैमरे के साथ ही सोशल मीडिया की प्रमुख भूमिका रही है।
युवा वर्ग आज इसके पीछे पागल सा हो गया है। लोगों में अपनी फोटो स्वयं से खींचने और सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, व्हॉट्सएप और इंस्टाग्राम आदि पर पोस्ट करने की होड़ लग गई है।
सेल्फी के शौक को और रोमांचकारी बनाने के लिए लोगों द्वारा खतरनाक स्टंट करते हुए फोटो खींचना या खिंचवाना जैसे कि चलती ट्रेन के आगे आकर, ट्रेन के डिब्बे पर लटकते हुए, पहाड़ी के ऊपर चढ़कर नदी के उफान के आगे आकर तीव्र बहाव के बीच में जाकर आदि। इस तरह यह एक खतरनाक शौक बनता जा रहा है। बीते कुछ महीनों में सेल्फी के इस शौक ने कितने ही लोगों की जान को खतरे में डाल दिया है और कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि खतरनाक सेल्फी के शौक ने उन्हें मौत के मुँह में पहुँचा दिया।
सेल्फी लेने में कोई बुराई नहीं है और यह गलत भी नहीं है, लेकिन तभी तक जब तक कि यह सिर्फ शौक है लेकिन जैसे ही यह सेल्फी का शौक जुनून बन जाए तो यह गलत है और खतरनाक भी है। इस सेल्फी से लोगों खासकर बच्चों की पढ़ाई पर भी गलत असर पड़ता है। सेल्फी को सोशल मीडिया पर डालने के बाद उन्हें इस बात की भी चिंता बनी रहती हैं कि कितने लोगों ने उनकी सेल्फी को लाइक किया और कितनों ने अच्छे कमेंट किए। यदि किसी ने गलत कमेंट कर दिया तो मन विचलित रहता है और इसका सीधा असर स्वास्थ्य और पढ़ाई पर पड़ता है।
निष्कर्ष यह है कि सेल्फी एक सीमा तक उचित है, लेकिन जब यह जुनून का रूप धारण कर ले तो गलत है। इसके अलावा स्वयं की सुरक्षा भी अत्यंत है।