सालुमारदा थिममक्का जन्म कब हुआ
Answers
Answer:
जन्म कर्नाटक के तुमकुर जिले के गुबी तालुक में हुआ। मेरे माता-पिता आर्थिक रूप से कमजोर थे। चूंकि तब शिक्षा का इतना प्रसार नहीं था, तो मेरी कोई स्कूली शिक्षा नहीं हुई। घर पर आर्थिक सहयोग के लिए कई बार मैं घर के पास मौजूद खदान में आकस्मिक मजदूर के रूप में काम भी कर लेती थी।
विज्ञापन
लगभग बीस वर्ष की आयु में मेरा विवाह कर्नाटक के रामनगर जिले के मगदी तालुक के हुलिकल निवासी चिकैया से हुआ। मेरे पति भी पढ़े-लिखे नहीं थे। वह मजदूरी करके ही परिवार का पेट पालते थे। इस तरह हमारी जिंदगी गुजरने लगी। विवाह के कुछ वर्ष बाद मुझे पता चला कि मैं कभी मां नहीं बन सकती।
ससुराल वालों का व्यवहार मेरे प्रति बदल गया, आए दिन मुझे ताने सुनने को मिलने लगे। हालात यहां तक पहुंच गए कि एक दिन मैंने आत्महत्या करने का मन बना लिया। तब मेरे पति ने मुझे पौधों को अपना बच्चा मानने की सलाह दी, और ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया।
इसके बाद मैंने पौधे लगाकर उनकी देखभाल अपने बेटों की तरह करनी शुरू की। हमारे गांव के पास बरगद के पुराने पेड़ थे। हमने उन पेड़ों से नए पौधे तैयार किए। पहले वर्ष हमने दस पौधे तैयार किए, जिन्हें पड़ोसी गांव के पास करीब पांच किलोमीटर की दूरी पर लगाया। दूसरे वर्ष में पंद्रह और तीसरे वर्ष करीब बीस बरगद के पौधे रोप दिए।
प्रतिदिन सुबह मैं और मेरे पति खेतों में काम करने के लिए एक साथ निकलते थे और दोपहर बाद सड़क किनारे पेड़ लगाते थे। इन पौधों को हम मानसून के समय लगाते थे, ताकि इनकी सिंचाई के लिए अधिक परेशानी का सामना न करना पड़े और उनके बढ़ने के लिए पर्याप्त वर्षा जल उपलब्ध हो सके।
साथ ही इन पौधों के पास कांटेदार झाड़ियों से बाड़ लगाकर उन्हें मवेशियों को चराने से भी बचाया। इस तरह तकरीबन तीस वर्ष में चार सौ से ज्यादा बरगद के पेड़, जबकि अन्य प्रजाति के आठ हजार से ज्यादा पेड़ तैयार हो गए। वर्ष 1991 में मेरे पति की मृत्यु हो गई, जिसके बाद मैंने अपनी जिंदगी इन पौधों के नाम कर दी।
अब इन पौधों से बड़े हो चुके पेड़ों की देखभाल कर्नाटक सरकार कर रही है। मेरे द्वारा लगाए गए बरगद के पेड़ बागपल्ली-हलागुरु सड़क के चौड़ीकरण के लिए काट दिए जाने के खतरे में आ गए थे। मैंने मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री से इस परियोजना पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया। परिणामस्वरूप, सरकार ने तकरीबन सत्तर वर्ष पुराने इन पेड़ों को बचाने के विकल्पों की तलाश करने का निर्णय लिया।
मेरी उम्र तकरीबन 107 वर्ष है, पर पौधरोपण का जज्बा मेरे भीतर अब भी बरकरार है। लगभग चार किलोमीटर का क्षेत्र अब काफी हरा-भरा हो गया है। पौधे लगाने की वजह से लोगों ने मुझे थीमक्का के बजाय 'सालुमारदा' नाम से बुलाना शुरू कर दिया। यह एक कन्नड़ शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'वृक्षों की पंक्ति'। लोग अचानक आते हैं, फिर वे मुझे कार में समारोह में ले जाते हैं।
वे मुझे पुरस्कार देते हैं और फिर वापस छोड़ जाते हैं, हालांकि मैं इन कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए हमेशा तैयार रहती हूं। पर मुझे इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि लोग मुझे पदक और उपहारों से क्यों नवाजते हैं। मुझे बहुत सारे पुरस्कारों से नवाजा गया। मेरे जीवन पर किताब भी लिखी गई। कर्नाटक सरकार भी मेरे नाम पर प्रकृति संरक्षण के लिए योजनाएं संचालित कर रही है। पर बिना पौधारोपण किए, इन पुरस्कारों, योजनाओं, किताबों का कोई मतलब नहीं है।
-विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित।
ये भी पढ़ें...
दुखद: मंदिरा बेदी के पति राज कौशल नहीं रहे, दिल का दौरा पड़ने से निधन
खतरे की घंटी : घातक साबित हो रहा है डेड वायरस, बढ़ रही है मरीजों की संख्या
 हमारे एजुकेशन पेज पर मिलेगी यूपी बोर्ड से संबंधित लेटेस्ट अपडेट, आज ही करें सब्सक्राइब
विज्ञापन
Latest Video
Recommended
Dehradun
उत्तराखंड : मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को अचानक दिल्ली से आया बुलावा, सारे कार्यक्रम किए रद्द
30 जून 2021
Shamli
आई मुसीबत : दुल्हन पर चढ़ाए इतने गहने कि पहुंच गई पुलिस, वीडियो वायरल, अब जांच करेगा आयकर विभाग
30 जून 2021
ADVERTORIAL
छात्रों के अच्छे प्रदर्शन की गारंटी है वेदान्तु का वीआईपी (VIP) प्रोग्राम, जानिए क्यों है खास
World
ब्रिटेन: उपचुनाव के दौरान लेबर पार्टी की प्रचार सामग्री पर मोदी की तस्वीर होने पर हंगामा
30 जून 2021
NEXT
© 2017-2021 Amar Ujala Limited