सील संतोख की केसर घोली, प्रेम-प्रीत पिचकार रे
उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे ।।
घट के पट सब खोल दिए हैं, लोकलाज सब डार रे
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, चरण कँवल बलिहार रे पंक्तियों का भावार्थ लिखिए
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