सालबाई की संधि की मुख्य शर्ते क्या थीं?
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सालबाई की सन्धि, मई 1782 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी और महादजी शिन्दे के बीच हुई थी।
फ़रवरी 1783 ई. में पेशवा की सरकार ने इसकी पुष्टि कर दी थी।
इसके फलस्वरूप 1775 ई. से चला आ रहा प्रथम मराठा युद्ध समाप्त हो गया।
सन्धि की शर्तों के अनुसार साष्टी टापू अंग्रेज़ों के अधिकार में ही रहा।
अंग्रेज़ों ने राघोवा का पक्ष लेना छोड़ दिया और मराठा सरकार ने इसे पेंशन देना स्वीकार कर लिया।
अंग्रेज़ों ने माधवराव नारायण को पेशवा मान लिया और यमुना नदी के पश्चिम का समस्त भू-भाग महादजी शिन्दे को लौटा दिया।
अंग्रेज़ों और मराठों में यह सन्धि 20 वर्षों तक शान्तिपूर्वक चलती रही।
इस सन्धि से सर्वाधिक लाभ अंग्रेज़ों को ही प्राप्त हुआ; क्योंकि अब उन्हें टीपू सुल्तान जैसे अन्य शत्रुओं से निश्चिन्तता पूर्वक निपटने तथा अपनी शक्ति और स्थिति को और भी मज़बूत करने का अवसर मिल गया।
मराठा साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के समझौते तो सालबाई की संधि कहते है |
Explanation:
अपनी शर्तों के तहत,
कंपनी ने साल्सेट और ब्रोच पर नियंत्रण बनाए रखा और गारंटी ली कि मराठा मैसूर के हैदर अली को हरा देंगे और कर्नाटक में फिर से लेकर अपना क्षेत्र बनाएंगे।
मराठों ने यह भी गारंटी दी कि फ्रांसीसी अपने क्षेत्रों पर बस्तियां स्थापित करने से प्रतिबंधित होंगे। बदले में, अंग्रेजों ने अपने नायक, रघुनाथ राव को पेंशन देने के लिए सहमति व्यक्त की, और माधवराव द्वितीय को मराठा साम्राज्य के पेशवा के रूप में स्वीकार किया।
अंग्रेजों ने जुमना नदी के पास महादजी शिंदे के प्रादेशिक दावों को भी मान लिया और पुरंदर की संधि के बाद अभिग्रहण किए गए सभी क्षेत्रों को मराठों को वापस दे दिया गया।