सामाजिक चुनौतियों पर अनुच्छेद
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कोरोना से लड़ाई में किन चुनौतियों का सामना कर रहा है भारत?
भारत ने पिछले 5 सालों में व्यापार क्षेत्र के विस्तार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. विशेष तौर पर जीएसटी और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं ने बड़ी संंख्या में विदेशी निवेशकों को भारत की तरफ आने के लिए मजबूर किया है.
दुनिया कोरोना महामारी की चपेट में है. लगभग सभी देश इस महामारी के कारण तमाम आर्थिक-सामाजिक संकट झेल रहे हैं. भारत भी इससे अछूता नहीं है. देश में इससे संक्रमित होने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. ऐसे समय में आईएमएफ और मूडीज जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं विश्व के अलग-अलग देशों की विकास दर के अनुमान लगाने में व्यस्त हैं.
उनके अनुसार भारत वर्तमान वित्त वर्ष में लगभग 1% से 2% की आर्थिक वृद्धि दर हासिल करेगा. लेकिन, भारत की वर्तमान स्थिति को देखते हुए ये आंकड़े खोखले नजर आ रहे हैं. पहले से ही आर्थिक सुस्ती की मार झेल रही भारतीय अर्थव्यवस्था इस आपातकालीन चिकित्सीय आपदा से ज्यादा प्रभावित होगी. वजह यह है कि भारत में यह लड़ाई दोतरफा है. एक, इस बीमारी से कैसे लड़ा जाए और दूसरा, इस लड़ाई के दौरान समाज के एक बहुत बड़े गरीब तबके की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाए।
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वस्तुतः एक नवीन विषय के रूप में समाजशास्त्र के उद्भव, विकास एवं परिवर्तन की पृष्ठभूमि में सामाजिक समस्या (सामाजिक मुद्दा या सामाजिक समस्या) की अवधारणा ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। समाजशास्त्र का विकास समस्यामूलक परिवेश एवं परिस्थितियों का अध्ययन करने एवं इनका निराकरण करने के प्रयासों के रूप में हुआ है। सामाजिक समस्याओं के अध्ययन में सामाजिक विचारकों का ध्यान सहज रूप से इसलिए आकर्षित हुआ है क्योंकि ये सामाजिक जीवन का अविभाज्य अंग है। मानव समाज न तो कभी सामाजिक समस्याओं से पूर्ण मुक्त रहा है और न ही रहने की सम्भावना निकट भविष्य में नजर आती है, परन्तु इतना तो निश्चित है कि आधुनिक समय में विद्यमान संचार की क्रान्ति तथा शिक्षा के प्रति लोगों की जागरूकता के फलस्वरूप मनुष्य इन समस्याओं के प्रति संवेदनशील एवं सजग हो गया है। सामाजिक समस्याओं के प्रति लेगों का ध्यान आकर्षित करने में जन संचार के माध्यम, यथा-टेलीविजन, अखबार एवं रेडियो ने अति महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। मुख्यतः टेलीविजन पर प्रसारित विभिन्न चेनलों के कार्यक्रमों तथा स्थानीय, प्रादेशिक एवं अन्तर्राज्यीय अखबारों की भूमिका प्रशंसनीय है।
मानव समाज में संरचनात्मक एवं सांस्कृतिक भिन्नताएं पाई जाती है। परन्तु भिन्न भिन्न समाजों में इनका स्वरूप, प्रकृति एवं गहनता अलग-अलग होती है। सामाजिक समस्याओं का सम्बन्ध समाजशास्त्र विषय के अन्तर्गत विद्यमान गत्यात्मक एवं परिवर्तन विषय से सम्बद्ध रहा है।