Hindi, asked by psha, 8 months ago

"सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकीकरण के लिए
सांस्कृतिक विविधता अपरिहार्य है।" लेखक
के इस कथन को उदाहरण देकर स्पष्ट
कीजिए।
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(Turn Ovd​

Answers

Answered by akshayan386
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Answer:

Sorry I didn't know that answer

Explanation:

ok

Answered by mithu456
1

उत्तर:

डॉ. योगेशयोगेश अटल ने अपने लेख 'संस्कृति और राष्ट्रीय एकीकरण' में भारतीय संस्कृति की मूलभूत विशेषता सांस्कृतिक विविधता को सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकता के लिये अपरिहार्य माना है। भारतवर्ष एक विशाल देश है। इस देश में विविध प्रकार की जातियाँ, विभिन्न धर्मों के धर्मावलम्बी तथा विविध भाषा-भाषी निवास करते

व्याख्या:डॉ. योगेश अटल ने अपने लेख ‘संस्कृति और राष्ट्रीय एकीकरण’ में भारतीय संस्कृति की मूलभूत विशेषता सांस्कृतिक विविधता को सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकता के लिये अपरिहार्य माना है। भारतवर्ष एक विशाल देश है। इस देश में विविध प्रकार की जातियाँ, विभिन्न धर्मों के धर्मावलम्बी तथा विविध भाषा-भाषी निवास करते हैं। इन सबके खान-पान, रहन-सहन और जीवन-यापन के रीति-रिवाजों में भी विविधता पायी जाती है। इस विविधता में ही राष्ट्र की सम्पन्नता निहित है और विविधता का अभाव दरिद्रता या शून्यता का योतक माना जाता है। उदाहरण के लिये, केंचुए की अपेक्षा मानव का जीवन अधिक सम्पन्न माना जाता है, क्योंकि उसमें शारीरिक विविधताओं का समावेश है और उसमें पर्याप्त सामंजस्य विद्यमान है। इसी प्रकार भारतीय सांस्कृतिक विविधता के मध्य सामंजस्यता, उद्देश्यों और विचारों की समानता के आधार पर विद्यमान है। हमारे देश में विभिन्न प्रकार के धर्म प्रचलित हैं। इनमें एक प्रकार की सांस्कृतिक एकता है जो उनके अविरोध की परिचायक है। इस धर्म के आराध्य दूसरे धर्म के महापुरुष के रूप में स्वीकार किये गये है। यथा-जैन धर्म के प्रवर्तक प्रथम तीर्थंकर भगवण ऋषभदेव का श्रीमद्भागवत में आदर के साथ उल्लेख किया गया। है। त्याग, तप तथा संयम की भावना का प्रचार, हिन्दू, जैन, बौद्ध सभी धर्म करते हैं। मैत्री, करुणा, मुदिता और अहिंसा की शिक्षा सभी भारतीय धर्मों में समान रूप से दी गयी है। हिन्दू धर्म के ‘यम’ जैनधर्म के ‘अणुव्रत’ तथा बौद्ध धर्म के ‘पंचशील’ एक ही है। इसी प्रकार भारतीय भाषाओं तथा उनके साहित्य में भी मूलभूत समानताएँ है तथा उनमें राष्ट्रीयता की अविरल धारा प्रवाहित है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि धर्म, जाति, भाषा, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज, साहित्य, संगीत, कला, नृत्य एवं दर्शन आदि भारतीय संस्कृति के विविध तत्व मोतियों के समान हैं, जिन्हें भारतवर्ष ने राष्ट्रीय एकता रूपी धागे में पिरो दिया है। भारत का एक समान इतिहास, धर्म, राष्ट्र के प्रति प्रेम एवं भक्ति की भावना भारतीयों को एक सूत्र में पिरोती है।

इतना ही नहीं, भारतीय संस्कृति ने आवश्यक एवं महत्वपूर्ण परम्पराओं का पोषण किया है और वांछित परिवर्तनों को स्वीकार किया है। इस देश की विशाल संस्कृति की ढेरों उपसंस्कृतियाँ हैं, जिनमें राष्ट्रीयता की अविरल धारा के कारण परस्पर सहचार (लेन-देन का व्यवहार) है। वे दीवारों में बन्द नहीं है और उनके गवाक्ष (खिड़कियाँ) खुले हुए हैं। इसी कारण भारतीय संस्कृति सुसमृद्धशाली और विकासमान है। वर्तमान विश्व की अनिवार्यता का पालन करने में उसकी सामर्थ्य बढ़ी है और हाज वह भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए समर्थ है। सहिष्णुता और सामंजस्य की विशेषता के कारण भारतीय संस्कृति की भारतीयता देश के उत्तर से दक्षिण तक तथा पूर्व से पश्चिम तक व्याप्त दिखाई देती है।

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