सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।”
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी- कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष य विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
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ha ye baat ahi hai ki krodh har baar nakaratmak nhi hota lekin vyarth me kiye jane wala krodh kisi kaam ka nahi hai
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bagvat geeta mai bagvaan krishn ne kaha hai ki nanush to sirf karam karne ke liye bana hai vah jo bhi kare thik hai par vayrth kuch bhi na kare Danywaad
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Good evening bro
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pls mark me as brainliest
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