सामाजिक क्रिएचर सिद्धांत कोणी
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सामाजिक परिवर्तन के सन्दर्भ में सामाजिक चक्र (social cycle) की मूल मान्यता यह है कि सामाजिक परिवर्तन की गति और दिशा एक चक्र की भाँति है और इसलिए सामाजिक परिवर्तन जहाँ से आरम्भ होता है, अन्त में घूम कर फिर वहीं पहुँच कर समाप्त होता है। यह स्थिति चक्र की तरह पूरी होने के बाद बार-बार इस प्रक्रिया को दोहराती है। इसका उत्तम उदाहरण भारत, चीन व ग्रीस की सभ्यताएँ हैं। चक्रीय सिद्धान्त के कतिपय प्रवर्तकों ने अपने सिद्धान्त के सार-तत्व को इस रूप में प्रस्तुत किया है कि इतिहास अपने को दुहराता है’।
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