Hindi, asked by dnsofficemamc, 2 days ago

सामाजिक कुरीतियों पर अनुच्छेद लिखिए​

Answers

Answered by navisroye07
0

Answer:

Here is your answer

भारत की सामाजिक समस्याएँ (Bharat ki samajik samsyayen)

यद्यपि भारत वर्ष में विभिन्नता में एकता कायम है। ये विभिन्नताएँ महान समस्याओं की प्रतीक हैं। जिस तरह हमारे देश में विभिन्नताएँ ही विभिन्नताएँ हैं, उस तरह से किसी दूसरे देश में नहीं दिखाई देती हैं।

हमारे देश में साम्प्रदाय जाति, क्षेत्र भाषा, दर्शन, बोली, खान पान, पहनावा-ओढ़ावा, रहन सहन और कार्य कलाप की विभिन्नताएँ एक छोर से दूसरे छोर तक फैली हुई हैं। यहाँ हिन्दु-धर्म, सिख-धर्म, ईसाई-धर्म, इस्लाम-धर्म, जैन-धर्म, बौद्ध धर्म, सनातन धर्म आदि सभी स्वतंत्रतापूर्वक हैं। हिन्दू, जैन, सिख, मुसलमान, पारसी आदि जाति और सम्प्रदाय के लोग निवास करते हैं। यहाँ का धरातल कहीं पर्वतीय हे, तो कहीं समतल है, तो कहीं पठारी है और कहीं तो घने घने जंगलों से ढका हुआ है। भाषा की विविधिता भी हमारे देश में फैली है। कुल मिलाकर यहाँ पन्द्रह भाषाएँ और इससे कहीं अधिक उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। खान पान, पहनावे आदि की विभिन्नता भी देखी जा सकती है। कोई चावल खाना पसन्द करता है, तो कोई गेहूँ, कोई मांस मछली चाहता है तो कोई फल सब्जियों पर ही प्रसन्न रहता है। इसी तरह से विचारधारा भी एक दूसरे से नहीं मिलती है।इन विभिन्नताओं के परिणामस्वरूप हमारे देश में कभी बड़े बड़े दंगे फसाद खड़े हो जाते हैं। इनके मूल में प्रान्तीयता, भाषावाद, सम्प्रदायवाद या जातिवाद ही होता है। इस प्रकार से हमारे देश की ये सामाजिक बुराई राष्ट्रीयता में बाधा पहुँचाती है।अंधविश्वास और रूढि़वादिता हमारे देश की भयंकर सामाजिक समस्या है। कभी किसी अपशकुन जो अंधविश्वास के आधार पर होता है। इससे हम कर्महीन होकर भाग्यवादी बन जाते हैं। किसी कवि ने ठीक ही कहा है-

‘प्राण जाति बस संषय नाहीं।’

नारी के प्रति अत्याचार, दुराचार, भ्रष्टाचार या बलात्कार का प्रयास करना हमारी एक लज्जापूर्ण सामाजिक समस्या है। नारी की जहाँ पूजा होती है, वहाँ देवतारमण करते हैं की मान्य उक्ति को भूलकर हम तुलसीदास की इस उक्ति को कंठस्थ कर चुके हैं-

‘ढोल, गंवार, शूद्र, पशु नारी, ये सकल ताड़ना के अधिकारी।’इससे हमारी सामाजिक मान्यता का हास हुआ है, फिर भी हम चेतन नहीं हैं। दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों को जन्मा कर नारी को बेरहम कष्ट देते हैं। उसे पीडि़त करते हैं।

भ्रष्टाचार हमारे देश की सबसे बड़ी सामाजिक समस्या है, जो कम होने या घटने की अपेक्षा यह दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। कालाधन, काला बाजार, मुद्रा-स्फीति, महँगाई आदि सब कुछ भ्रष्टाचार की जड़ से ही पनपता है। अगर निकट भविष्य में इस सुरसा रूपी भ्रष्टाचार को रोकने के लिए हनुमत प्रयास नहीं किया गया तो यह निश्चय हमारी बची खुशी सामाजिक मान्यताओं को निगलने में देर नहीं लगायेगी।छूआछूत जातिवाद और भाई भतीजावाद हमारी सामाजिक समस्याओं की रीढ़ है। इस प्रकार की सामाजिक समस्याओं के कारण ही सामाजिक विषमता बढ़ती जा रही है। इसी के फलस्वरूप हम अभी तक रूढि़वादी और संकीर्ण मनोवृत्तियों के बने हुए हैं और चतुर्दिक विकास में पिछड़े हुए हैं।

अशिक्षा और निर्धनता भी हमारी भयंकर सामाजिक समस्याएँ हैं। इनसे हमारा न तो बौद्धिक विकास होता है और न शारीरिक विकास ही।

(500 शब्द words)

Similar questions