Hindi, asked by yashgaware31, 5 months ago

सामाजिक क्षेत्र से संबंधित छः नारे लिखिए​

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Answered by pk995005
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बिना नारों के चुनाव कुछ ऐसे ही लगता है कि जैसे कोई सेना बिना असलहे के ही युद्ध में उतर गई हो. नारे ही चुनाव अभियान में दम और कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम करते हैं. जोर का नारा लगे और फिर वहां मौजूद लोगों के लहू में एड्रिनलिन का जोरदार स्राव हो...फिर जोश आसमान छूने लगता है. हर पार्टी एक ऐसा नारा अपने लिए चाहती है जिससे वह वोटरों को लुभा सके. इतिहास गवाह है कि कम संसाधनों के बावजूद तगड़े नारों और ऊर्जावान भाषणों के दम पर कई ताकतवर प्रतिस्पर्धी चित्त कर दिए गए हैं.

बिना नारों के चुनाव कुछ ऐसे ही लगता है कि जैसे कोई सेना बिना असलहे के ही युद्ध में उतर गई हो. नारे ही चुनाव अभियान में दम और कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम करते हैं. जोर का नारा लगे और फिर वहां मौजूद लोगों के लहू में एड्रिनलिन का जोरदार स्राव हो...फिर जोश आसमान छूने लगता है. हर पार्टी एक ऐसा नारा अपने लिए चाहती है जिससे वह वोटरों को लुभा सके. इतिहास गवाह है कि कम संसाधनों के बावजूद तगड़े नारों और ऊर्जावान भाषणों के दम पर कई ताकतवर प्रतिस्पर्धी चित्त कर दिए गए हैं. कई चुनावी नारे विवादित भी रहे हैं पर लहर पैदा करके अप्रत्याशित नतीजे दिलाने के लिए आज भी ये लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं. 2019 के लोकसभा चुनावों में एक बार फिर मोदी सरकार एक नारा है, जो भाजपा आजमा रही है. तो कांग्रेस भाजपा भगाओ, देश बचाओ के नारे पर खेल रही है.

बिना नारों के चुनाव कुछ ऐसे ही लगता है कि जैसे कोई सेना बिना असलहे के ही युद्ध में उतर गई हो. नारे ही चुनाव अभियान में दम और कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम करते हैं. जोर का नारा लगे और फिर वहां मौजूद लोगों के लहू में एड्रिनलिन का जोरदार स्राव हो...फिर जोश आसमान छूने लगता है. हर पार्टी एक ऐसा नारा अपने लिए चाहती है जिससे वह वोटरों को लुभा सके. इतिहास गवाह है कि कम संसाधनों के बावजूद तगड़े नारों और ऊर्जावान भाषणों के दम पर कई ताकतवर प्रतिस्पर्धी चित्त कर दिए गए हैं. कई चुनावी नारे विवादित भी रहे हैं पर लहर पैदा करके अप्रत्याशित नतीजे दिलाने के लिए आज भी ये लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं. 2019 के लोकसभा चुनावों में एक बार फिर मोदी सरकार एक नारा है, जो भाजपा आजमा रही है. तो कांग्रेस भाजपा भगाओ, देश बचाओ के नारे पर खेल रही है. हर राजनीतिक नारा अपने साथ कई किस्से लेकर चलता है. 2014 के लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस रक्षात्मक मुद्रा में थी तो उसके नारे भी देखिए. 'कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ' तो था ही. भाजपा के तब के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र

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