सामाजिक मनोविज्ञान की पारस्परिक निर्भरता वाली प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
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सामाजिक मनोविज्ञान की पारस्परिक निर्भरता वाली प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
सामाजिक मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक है। जब हम किसी भी विषय को वैज्ञानिक कहते हैं, तो उसकी कुछ विशेषताएँ (मूल्य) होती हैं, और उन विशेषताओं के साथ ही साथ उस विषय के अध्ययन के अन्तर्गत विभिन्न विधियाँ होती हैं, जिनका प्रयोग सम्बन्धित विषयों के अध्ययन में किया जाता है रौबर्ट ए. बैरन तथा डॉन बायर्न (2004:6) ने इन विशेषताओं या विजकोष मूल्यों को इस प्रकार बताया है, किसी भी विषय के वैज्ञानिक होने के लिए वे आवश्यक हैं-
(1) यथार्थता
(2) विषयपरकता
(3) संशयवादिता और
(4) तटस्थता।
इन चारों को स्पष्ट करते हुए उनका कहना है कि - यथार्थता से अभिप्राय दुनिया (जिसके अन्तर्गत सामाजिक व्यवहार व विचार आता है) के बारे में यथासम्भव सावधानीपूर्वक, स्पष्ट व त्रुटिरहित तरीके से जानकारी हासिल करने एवं मूल्याँकन करने के प्रति वचनबद्धता से है।
विषयपरकता से तात्पर्य यथासम्भव पूर्वाग्रहरहित जानकारी प्राप्त करने एवं मूल्यांकन करने के प्रति वचनबद्धता से है।
संशयवादिता से तात्पर्य तथ्यों का सही रूप में स्वीकार करने के प्रति वचनबद्धता ताकि उसे बार-बार सत्यापित किया जा सके, से है।
तटस्थता का अभिप्राय अपने दृष्टिकोण, चाहे वो कितना भी दृढ़ हो, को बदलने के प्रति वचनबद्धता से है, यदि मौजूदा साक्ष्य यह बताता है कि ये दृष्टिकोण गलत है। सामाजिक मनोविज्ञान एक विषय के रूप में उपरोक्त मूल्यों से गहन रूप से सम्बद्ध है। विविध विषयों से सम्बन्धित अध्ययनों के लिए इसमें वैज्ञानिक तरीकों को अपनाया जाता है।
हमने शुरू में सामाजिक मनोविज्ञान की परिभाषाएँ दी हैं, उनसे स्पष्ट होता है कि यह विज्ञान समाजशास्त्र और मनोविज्ञान दोनों ही की विशेषताओं से युक्त है। वास्तव में व्यक्ति के व्यवहारों का अध्ययन करने वाला यह एक महत्वपूर्ण विज्ञान है। इस सन्दर्भ में क्रच और क्रचफील्ड (1948 : 7) के अनुसार,
‘‘समाज का अध्ययन करने वाले विज्ञानों में केवल सामाजिक मनोविज्ञान ही मुख्यतया सम्पूर्ण व्यक्ति का अध्ययन करता है। अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र तथा अन्य सामाजिक विज्ञानों की अध्ययन वस्तु सामाजिक संगठन की संरचना एवं प्रकार्य तथा सीमित एवं विशिष्ट प्रकार की संस्थाओं के अन्तर्गत लोगों द्वारा प्रदर्शित संस्थागत व्यवहार ही है। दूसरी ओर सामाजिक मनोविज्ञान का सम्बन्ध समाज में व्यक्ति के व्यवहार के प्रत्येक पक्ष से है। अतः मोटे तौर पर सामाजिक मनोविज्ञान को समाज में व्यक्ति के व्यवहार का विज्ञान कहकर परिभाषित किया जा सकता है।’’
इसकी वास्तविक प्रकृति और वैज्ञानिकता की पुष्टि शेरिफ और शेरिफ (1956:5) के इस कथन से होती है कि,
‘‘सामाजिक मनोविज्ञान केवल विभिन्न प्रकार की अवधारणाओं को अपना लेने के कारण ही ‘सामाजिक’ नही हो गया है, अपितु वास्तविकता तो यह है कि सामान्य मनोविज्ञान की प्रामाणिक अवधारणाओं को सामाजिक क्षेत्र में विस्तृत करके या उपयोग में लाकर ही सामाजिक मनोविज्ञान ‘सामाजिक’ विज्ञान बन पाया है।’’
वास्तव में देखा जाये तो सामाजिक मनोविज्ञान में विज्ञान की सभी अवधारणाएँ, शर्ते या विशेषताएँ पायी जाती है, जैसे इसमें विषय वस्तु का क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित तरीके से वैज्ञानिक पद्धति से अध्ययन किया जाता है। आवश्यकतानुसार प्रयोशाला अध्ययन, क्षेत्रीय अध्ययन या क्षेत्रीय प्रयो ग किया जाता है। इसमें कार्य-कारण सम्बन्धों की खोज की जाती है। वस्तुगतता के स्थान पर वस्तुनिष्ठता पर जोर दिया जाता है। सम्बन्धित उपकल्पनाओं को निर्मित किया जाता है तथा उसकी सत्यता की जाँच प्राप्त तथ्यों के आधार पर की जाती है तथा उसी के आधार पर वैज्ञानिक सिद्धान्त का निर्माण किया जाता है तथा उसका प्रमाणीकरण भी होता है।
इस तरह से स्पष्ट है कि सामाजिक मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक प्रकृति है, क्योंकि यह विज्ञान के अन्य विषयों की तरह ही मूल्यों एवं विधियों को अपनाता हैं। यह एक आनुभविक विज्ञान (इम्पीरिकल साइंस) है। सामाजिक मनोविज्ञान शोध के चार मुख्य लक्ष्य होते हैं (टेलर तथा अन्य 2006:15)
(1) कारक
(2) कार्य-कारण विश्लेषण
(3) सिद्धान्त निर्माण, और
(4) उपयोग (एप्लीकेशन)
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