History, asked by Tiwar, 10 months ago

सामाजिक परिवर्तन 100 शब्दों मे

Answers

Answered by Gavin1234
0

Answer:

सामाजिक परिवर्तन, समाज के आधारभूत परिवर्तनों पर प्रकाश डालने वाला एक विस्तृत एवं कठिन विषय है। इस प्रक्रिया में समाज की संरचना एवं कार्यप्रणाली का एक नया जन्म होता है। इसके अन्तर्गत मूलतः प्रस्थिति, वर्ग, स्तर तथा व्यवहार के अनेकानेक प्रतिमान बनते एवं बिगड़ते हैं। समाज गतिशील है और समय के साथ परिवर्तन अवश्यंभावी है।

आधुनिक संसार में प्रत्येक क्षेत्र में विकास हुआ है तथा विभिन्न समाजों ने अपने तरीके से इन विकासों को समाहित किया है, उनका उत्तर दिया है, जो कि सामाजिक परिवर्तनों में परिलक्षित होता है। इन परिवर्तनों की गति कभी तीव्र रही है कभी मन्द। कभी-कभी ये परिवर्तन अति महत्वपूर्ण रहे हैं तो कभी बिल्कुल महत्वहीन। कुछ परिवर्तन आकस्मिक होते हैं, हमारी कल्पना से परे और कुछ ऐसे होते हैं जिसकी भविष्यवाणी संभव थी। कुछ से तालमेल बिठाना सरल है जब कि कुछ को सहज ही स्वीकारना कठिन है। कुछ सामाजिक परिवर्तन स्पष्ट है एवं दृष्टिगत हैं जब कि कुछ देखे नहीं जा सकते, उनका केवल अनुभव किया जा सकता है। हम अधिकतर परिवर्तनों की प्रक्रिया और परिणामों को जाने समझे बिना अवचेतन रूप से इनमें शामिल रहे हैं। जब कि कई बार इन परिवर्तनों को हमारी इच्छा के विरुद्ध हम पर थोपा गया है। कई बार हम परिवर्तनों के मूक साक्षी भी बने हैं। व्यवस्था के प्रति लगाव के कारण मानव मस्तिष्क इन परिवर्तनों के प्रति प्रारंभ में शंकालु रहता है परन्तु शनैः उन्हें स्वीकार कर लेता है।

Hope so this helps you......

Answered by sweatha123
0

Answer:

HEY MATE HERE IS YOUR ANSWER

जैसा कि महान दार्शनिक अरस्तू ने भी कहा है- परिवर्तन संसार का नियम है। परिवर्तन किसी भी वस्तु, विषय अथवा विचार में समय के अन्तराल से उत्पन्न हुई भिन्नता को कहते हैं। परिवर्तन एक बहुत बड़ी अवधारणा है और यह जैविक, भौतिक तथा सामाजिक तीनों जगत में पाई जाती है किंतु जब परिवर्तन शब्द के पूर्व सामाजिक शब्द जोड़ कर उसे सामाजिक परिवर्तन बना दिया जाता है तो निश्चित हीं उसका अर्थ सीमित हो जाता है। परिवर्तन अवश्यम्भावी है क्योंकि यह प्रकृति का नियम है। संसार में कोई भी पदार्थ नहीं जो स्थिर रहता है। उसमें कुछ न कुछ परिवर्तन सदैव होता रहता है। स्थिर समाज की कल्पना करना आज के युग में संभव नहीं है। समाज में सामंजस्य स्थापित करने के लिए परिवर्तन आवश्यक है। मैकाइवर तथा पेज का कहना है कि समाज परिवर्तनशील तथा गत्यात्मक दोनो है। वास्तव में समाज से संबंधित विभिन्न पहलुओं में होने वाले परिवर्तन को ही सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है। सामाजिक परिवर्तन एक स्वभाविक प्रक्रिया है। यदि हम समाज में सामंजस्य और निरंतरता को बनाए रखना चाहते हैं तो हमें यथास्थिति अपने व्यवहार को परिवर्तनशील बनाना ही होगा। यदि ऐसा न होता तो मानव समाज की इतनी प्रगति संभव नहीं होती। निश्चित और निरंतर परिवर्तन मानव समाज की विशेषता है। सामाजिक परिवर्तन का विरोध होता है क्योंकि समाज में रूढीवादी तत्त्व प्राचीनता से ही चिपटे रहना पसंद करते हैं। स्त्री स्वतंत्रता और समान अधिकार की भावना, स्त्रियों की शिक्षा, पर्दा प्रथा की समाप्ति, स्त्रियों का आत्मनिर्भर होना, बाल विवाह प्रथा पर रोक, यौन शोषण पर रोक, विधवा विवाह की प्रथा, भ्रूण हत्या की समाप्ति और भ्रष्टाचार की समाप्ति आदि अनेक परिवर्तनों को आज भी समाज के कुछ तत्त्व स्वीकार नहीं कर पाते हैं। तथापि इनमें परिवर्तन होता जा रहा है।

HOPE THIS HELPS YOU

Similar questions