सामाजिक संरचना की अवधारणा पर निबंध
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सामाजिक संरचना
स्पष्ट है की संरचना शब्द से आशय इकाइयों की क्रमबद्धता से है। इकाइयों का एक ऐसा प्रतिमानित संबंध जो अपेक्षाकृत स्थिर होता है संरचना कहलता हैं। हम हमारे चारों और की वस्तुओं की संरचना को भली-भांती समझ सकते हैं। उदाहरण के लिए आप एक मकान की संरचना को ले सकते हैं जिसकी संरचना ईट, चूना, सीमेंट आदि चीजों की क्रमबद्धता से बनी हैं। अगर मनाक मे से ईट, चूना, सीमेंट आदि को अगल-अलग कर दिया जाऐ तो मकान की संरचना नष्ट हो जाएँगी। दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों के कुल योग को सामाजिक संरचना माना हैं।
सामाजिक संरचना किसे कहते है इसे समझने के लिए अब हम विभिन्न विद्वानों द्धारा दी गई सामाजिक संरचना की परिभाषा जानेंगे।
सामाजिक संरचना की परिभाषा
टालकाट पारसन्स के अनुसार; सामाजिक संरचना परस्पर संबंधित संस्थाओं, एजेंसियों और सामाजिक प्रतिमानों तथा समूह मे प्रत्येक सदस्य द्वारा ग्रहण किये गये पदों एवं कार्यों की विशिष्ट क्रमबद्धता को कहते हैं।
इग्गन के अनुसार " अन्त:वैयक्तिक सम्बन्ध सामाजिक संरचना के अंग हैं, जो कि व्यक्तियों द्वारा अधिकृत पद-स्थितियों के रूप मे सामाजिक संरचना के अंग बन जाते है और उसका निर्माण करते हैं।
फोर्टस " व्यक्तियों के बीच पाये जाने वाले पारस्परिक सम्बन्ध ही सामाजिक संरचना के अंग है। इसमे जिन अंगो का समावेश होता हैं, उसकी प्रकृति परिवर्तनशील हैं तथा इनमे पर्याप्त भिन्नता भी है।
मैकाइवर तथा पेज " समूह निर्माण के विभिन्न रूप से सामाजिक संरचना के जटिल प्रतिमान की रचना करते है। सामाजिक संरचना के विश्लेषण मे सामाजिक प्राणियों की विविध मनोवृत्तियो तथा रूचियों के कार्य प्रदर्शित होते हैं। कार्ल मानहीम के शब्दों में; सामाजिक संरचना परस्पर क्रिया मे निहित सामाजिक शक्तियों का जाल है।
लेवीस्ट्रास के अनुसार; एक समाज की संरचना उस समाज मे रहने वाले लोगों के दिमाग की संरचना हैं।
रेडक्लफ ब्राउन के अनुसार; सामाजिक संरचना के अंग मनुष्य ही है और स्वयं संरचना संस्था द्वारा परिभाषित और नियमित संबंधों मे लगे हुये व्यक्तियों की क्रमबद्धता हैं।
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