सामा ने दिया
आशीष
सामा
वृक्षों
वण
और
भी
श्रापमुक्त होने के बाद सा
ने प्रिय भाई को आशीवा
देते हुए कहा था कि जो में
स्त्रियां भविष्य में ऐसा करेंग
उन्हें भगवान आपके जैसे है
पुत्र
पूरा रखेंगे। रवीन्द्रनाथ ठाकुर
के एक गीत का मुखड़ा ही
है - 'माटिक सामा बनली
बहिनो खेल' चलली भैया
जीब' हो युग-युग जीब'
भाई, सुहाग
सुहाग और
से भरा-
में
कत्र
के
।
हो। कहते हैं कि शरद
में मिथिला में प्रवासी
पक्षियों का आगमन शुरू
हो जाता है। शरद में ही
सामा-चकेबा
पक्षी-रूप
में मिथिला आ गए थे। उन्हें
ढूंढ़ते-ढूंढते साम्ब भी यहां पहंचे
और स्त्रियों से सामा-चकेबा का
खेल खेलने का आग्रह किया।
xossiya
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i don't no
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