Hindi, asked by ASHIISH6187, 11 months ago

सीमा-रेखा एकांकी की कथावस्तु - विष्णु प्रभाकर

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Answered by Anonymous
3

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Explanation:

सीमा-रेखा’ एकांकी विष्णु प्रभाकर जी द्वारा रचित राष्ट्रीय चेतना प्रधान एकांकी है। लेखक का मत है कि जनतंत्र के वास्तविक स्वरूप में दिन-प्रतिदिन विसंगतियाँ उत्पन्न हो रही हैं। जिसके कारण राष्ट्रीय हित की निरंतर हत्या हो रही है। राष्ट्रीय चेतना के अभाव में होने वाले आंदोलनों में राष्ट्रीय संपत्ति की हानि चिंता का विषय बन गई है। प्रभाकर जी ने इस समस्या को ही अपनी एकांकी की कथावस्तु बनाया है। इसमें उन्होंने चार भाइयों के रूप में स्वतंत्र भारत के चार वर्गों के प्रतिनिधियों के द्वंद्व को प्रस्तुत किया है। एकांकी में विभिन्न घटनाओं के माध्यम से इस बात को भी सिद्ध किया गया है कि जनतंत्र में सरकार व जनता के बीच कोई विभाजक रेखा नहीं होती। एकांकी की कथावस्तु निम्नवत हैं–

एकांकी का आरंभ उपमंत्री शरतचंद्र की बैठक से होता है। जहाँ उन्हें टेलीफोन पर शहर में झगड़े व पुलिस द्वारा उग्र भीड़ पर गोली चलाने की सूचना मिलती है। तभी उनकी पत्नी अन्नपूर्णा बाहर से घबराई हुई आती है। उपमंत्री शरतचंद्र पुलिस द्वारा गोली चलाने का कोई ठोस कारण बताते हुए इसका समर्थन करते हैं। चौथे भाई सुभाष की पत्नी सविता पुलिस के इस कृत्य को अनुचित बताती है परंतु शरतचंद्र के बड़े भाई लक्ष्मीचंद्र पुलिस के इस कार्य को उचित बताते हैं। फोन पर शरतचंद्र को सूचना मिलती है कि गोलीबारी में २० लोग घायल हुए व पाँच लोग मारे गए हैं। घायलों को अस्पताल पहँचा दिया गया है। तभी पुलिस कप्तान विजय जो कि शरतचंद्र व लक्ष्मीचंद्र का भाई है, वहाँ आता है व अपने कार्य को उचित बताता है क्योंकि जनता को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है।

इसी बीच सुभाष आता है। वह एक जन नेता है और उक्त तीनों का भाई है। वह पुलिस द्वारा किए गए गोलीकांड की निंदा करता है और स्वतंत्र भारत में गोली चलाना जुर्म मानता है। वह उपमंत्री शरतचंद्र से निवेदन करता है कि इस घृणित कार्य के लिए उत्तरदायी पुलिस अधिकारी को मुअत्तिल किया जाए व इसकी जाँच कराई जाए। सुभाष व सविता पुन: कहते हैं कि जनतंत्र का अर्थ ही जनता का राज्य है।

तभी वहाँ लक्ष्मीचंद्र की पत्नी तारा विक्षिप्त अवस्था में आती है और सूचना देती है कि उसका पुत्र अरविंद पुलिस की गोली का शिकार हो गया है। अब लक्ष्मीचंद्र इसे पुलिस की क्रूरता बताते हैं और विजय पागल-सा हो जाता है। तभी भीड़ के अनियंत्रित होकर आगे बढ़ने की सूचना मिलती है। विजय, शरतचंद्र और सुभाष भीड़ को नियंत्रित करने के लिए जाते हैं। विजय अनियंत्रित भीड़ पर गोली चलाने से इंकार कर देता है तथा सुभाष शरतचंद्र को भीड़ को समझाने के लिए बुलाने आता है। शरतचंद्र व सुभाष दोनों जाते हैं। सविता भी उनके साथ जाती है। सविता अन्नपूर्णा से कहती है कि सरकार के लोगों को मंत्रिमंडल की बैठक करने के बजाय जनता के बीच जाना चाहिए। विजय की पत्नी उमा अरविंद की मौत पर दु:खी होती है। विजय के अनियंत्रित भीड़ पर गोली न चलाने के परिणामस्वरूप विजय व सुभाष असामाजिक तत्वों के हमले में कुचलकर मारे जाते हैं और शरतचंद्र घायल हो जाते हैं। सारा वातावरण करुणा और गंभीरता से परिपूर्ण हो जाता है। भीड़ शांत हो जाती है। तीनों के शव बैठक में लाकर रख दिए जाते हैं। शरतचंद्र, अरविंद व सुभाष को जनता की क्षति और विजय को सरकार की क्षति बताते हैं। अन्नपूर्णा इसको अपने घर की क्षति बताती है। इस पर सविता इसे देश की क्षति बताती है। वह कहती है-‘‘देश क्या हमसे और हम क्या देश से अलग हैं।’’

शरतचंद्र उसकी बात का समर्थन करते हुए कहता है वास्तव में यह सारे देश की क्षति है। जनतंत्र में सरकार और जनता के बीच कोई विभाजक-रेखा नहीं होती।


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jasmin33: ok.. wait
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Answered by arnav134
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सीमा-रेखा’ एकांकी विष्णु प्रभाकर जी द्वारा रचित राष्ट्रीय चेतना प्रधान एकांकी है। लेखक का मत है कि जनतंत्र के वास्तविक स्वरूप में दिन-प्रतिदिन विसंगतियाँ उत्पन्न हो रही हैं। जिसके कारण राष्ट्रीय हित की निरंतर हत्या हो रही है। राष्ट्रीय चेतना के अभाव में होने वाले आंदोलनों में राष्ट्रीय संपत्ति की हानि चिंता का विषय बन गई है। प्रभाकर जी ने इस समस्या को ही अपनी एकांकी की कथावस्तु बनाया है। इसमें उन्होंने चार भाइयों के रूप में स्वतंत्र भारत के चार वर्गों के प्रतिनिधियों के द्वंद्व को प्रस्तुत किया है। एकांकी में विभिन्न घटनाओं के माध्यम से इस बात को भी सिद्ध किया गया है कि जनतंत्र में सरकार व जनता के बीच कोई विभाजक रेखा नहीं होती। एकांकी की कथावस्तु निम्नवत हैं–

एकांकी का आरंभ उपमंत्री शरतचंद्र की बैठक से होता है। जहाँ उन्हें टेलीफोन पर शहर में झगड़े व पुलिस द्वारा उग्र भीड़ पर गोली चलाने की सूचना मिलती है। तभी उनकी पत्नी अन्नपूर्णा बाहर से घबराई हुई आती है। उपमंत्री शरतचंद्र पुलिस द्वारा गोली चलाने का कोई ठोस कारण बताते हुए इसका समर्थन करते हैं। चौथे भाई सुभाष की पत्नी सविता पुलिस के इस कृत्य को अनुचित बताती है परंतु शरतचंद्र के बड़े भाई लक्ष्मीचंद्र पुलिस के इस कार्य को उचित बताते हैं। फोन पर शरतचंद्र को सूचना मिलती है कि गोलीबारी में २० लोग घायल हुए व पाँच लोग मारे गए हैं। घायलों को अस्पताल पहँचा दिया गया है। तभी पुलिस कप्तान विजय जो कि शरतचंद्र व लक्ष्मीचंद्र का भाई है, वहाँ आता है व अपने कार्य को उचित बताता है क्योंकि जनता को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है।

इसी बीच सुभाष आता है। वह एक जन नेता है और उक्त तीनों का भाई है। वह पुलिस द्वारा किए गए गोलीकांड की निंदा करता है और स्वतंत्र भारत में गोली चलाना जुर्म मानता है। वह उपमंत्री शरतचंद्र से निवेदन करता है कि इस घृणित कार्य के लिए उत्तरदायी पुलिस अधिकारी को मुअत्तिल किया जाए व इसकी जाँच कराई जाए। सुभाष व सविता पुन: कहते हैं कि जनतंत्र का अर्थ ही जनता का राज्य है।

तभी वहाँ लक्ष्मीचंद्र की पत्नी तारा विक्षिप्त अवस्था में आती है और सूचना देती है कि उसका पुत्र अरविंद पुलिस की गोली का शिकार हो गया है। अब लक्ष्मीचंद्र इसे पुलिस की क्रूरता बताते हैं और विजय पागल-सा हो जाता है। तभी भीड़ के अनियंत्रित होकर आगे बढ़ने की सूचना मिलती है। विजय, शरतचंद्र और सुभाष भीड़ को नियंत्रित करने के लिए जाते हैं। विजय अनियंत्रित भीड़ पर गोली चलाने से इंकार कर देता है तथा सुभाष शरतचंद्र को भीड़ को समझाने के लिए बुलाने आता है। शरतचंद्र व सुभाष दोनों जाते हैं। सविता भी उनके साथ जाती है। सविता अन्नपूर्णा से कहती है कि सरकार के लोगों को मंत्रिमंडल की बैठक करने के बजाय जनता के बीच जाना चाहिए। विजय की पत्नी उमा अरविंद की मौत पर दु:खी होती है। विजय के अनियंत्रित भीड़ पर गोली न चलाने के परिणामस्वरूप विजय व सुभाष असामाजिक तत्वों के हमले में कुचलकर मारे जाते हैं और शरतचंद्र घायल हो जाते हैं। सारा वातावरण करुणा और गंभीरता से परिपूर्ण हो जाता है। भीड़ शांत हो जाती है। तीनों के शव बैठक में लाकर रख दिए जाते हैं। शरतचंद्र, अरविंद व सुभाष को जनता की क्षति और विजय को सरकार की क्षति बताते हैं। अन्नपूर्णा इसको अपने घर की क्षति बताती है। इस पर सविता इसे देश की क्षति बताती है। वह कहती है-‘‘देश क्या हमसे और हम क्या देश से अलग हैं।’’

शरतचंद्र उसकी बात का समर्थन करते हुए कहता है वास्तव में यह सारे देश की क्षति है। जनतंत्र में सरकार और जनता के बीच कोई विभाजक-रेखा नहीं होती

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