सेमुसी इति पदस्य को को अर्थ
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शीर्षक
इस पाठ का शीर्षक है - शुचिपर्यावरणम्
यह दो पदों से बना हुआ है।
शुचि - शुद्ध, स्वच्छ, साफ
पर्यावरणम् - हमारे इर्द गिर्द फैला हुआ परिसर
तथा इन दोनों में विशेषण - विशेष्य समास है -
शुचि पर्यावरणम्
शुचि च तत् पर्यावरणम्
शुद्ध जो है वह पर्यावरण
इन में से शुचि इस शब्द का अर्थ समझना तो बहुत आसान है। किन्तु पर्यावरण शब्द विचारणीय है। इस शब्द में यण् सन्धि है -
परि + आवरण - पर्यावरण
परितः इस शब्द का अर्थ होता है - परितः। यानी चारों ओर से। तथा आवरण इस शब्द का अर्थ होता है आच्छादन। आच्छादन अथवा आवरण इन शब्दों का अर्थ होता है किसी चीज़ को ढकने वाली वस्तु। और यहाँ परि + आवरण = पर्यावरण का अर्थ होता है - हमें चारों तरफ़ से आच्छादित करने (ढकने) वाली वस्तु।
जैसे की हम जानते हैं कि हम पृथ्वी पर रहते हैं। और हमारी पृथ्वी पर हम चारों तरफ से प्राकृतिक वस्तुओँ से घिरे हुए हैं। जैसे की - ज़मीन, हवा, पानी, पेड़, पौधे, जीव, जन्तु, जानवर, कीटाणु, विषाणु इत्यादि। ये सारी वस्तुएं पर्यावरण का हिस्सा हैं। हम इन सभी से घिरे हुए हैं।
यदि इन सभी चीज़ो का हमारे जीवन पर भी बहुत परिणाम होते हैं। इसीलिए पर्यावरण का अभ्यास होना आवश्यक है।
कविता का ध्रवपद
दुर्वहमत्र जीवितं जातं प्रकृतिरेव शरणम्। शुचि-पर्यावरणम्॥
शब्दार्थ
दुर्वहम् - कठिनम्।
अत्र - यहाँ
जीवितम् - जीवनम्। जीना
जातम् - अभवत्। हो गया है
प्रकृतिः - कुदरत
एव - ही
शरणम् - आश्रयस्थानम्। पनाह (Shelter)
शुचि-पर्यावरणम् - शुद्ध पर्यावरणम्
अन्वय
अत्र (अस्मिन् जगति) जीवितं दुर्वहं जातम्। (अतः) प्रकृतिः एव शरणम् अस्ति। शुचिपर्यावरणम् (आवश्यकम्)।
यहाँ इस दुनिया में जीना कठिन हो गया है। इसीलिए कुदरत ही शरण है। शुद्ध पर्यावरण आवश्यक है।
दरअसल हम मनुष्य भी पर्यावरण हा एक हिस्सा हैं। और हमारी गतिविधियाँ पर्यावरण को अशुद्ध बनाती हैं। जिस की वजह से अब तक पर्यावरण ख़राब होते गया और इस बात का सबसे अधिक नुकसान मानवेतर जीवों को सहना पड़ा है। परन्तु आज तो साक्षात् मनुष्य भी पर्यावरण की ख़राबी की वजह से प्रभावित हो रहे हैं। इसीलिए हमारे कवि ने इस कविता के माध्यम से शुचि पर्यावरण , यानी शुद्ध पर्यावरण का महत्त्व हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है।