सुमित्रानंदन पंत जी कल्पना के सुकुमार कवि है- स्पष्ट कीजिए। (2marks)
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sumitranandan panth ji prakruti ke bejood Kavi,
vey saat varsh ki aayu me puraskrukt hy,
vey chaayaavad ke pramuk Kavi mane jaate hy,
vey saat varsh ki aayu me puraskrukt hy,
vey chaayaavad ke pramuk Kavi mane jaate hy,
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पावस यानि सर्दी का मौसम है जिसमे प्रकृति का रूप हर पल बदलता रहता है। कभी धूप खिल जाती है तो कभी काले घने बादल सूरज को ढ़ँक लेते हैं। ये सब हर पल एक नए दृष्टांत की रचना करते हैं।
यहाँ पर पर्वत श्रृंखला की तुलना करघनी (कमर में पहनने वाला गहना) से की गई है। विशाल पर्वत अपने सैंकड़ों फूल जैसी आँखों को फाड़कर नीचे पानी में जैसे अपना ही अक्स निहार रहा हो। साधारण भाषा में कहा जाये तो पानी में पहाड़ का प्रतिबिम्ब बन रहा है। पहाड़ के चरणों में जलराशि किसी विशाल आईने की तरह फैली हुई है।
कवि ने झरनों की सुंदरता का बखान किया है। झरने मोती की लड़ियों की तरह झर रहे हैं। उनकी कल-कल ध्वनि से ऐसा लगता है जैसे वे पहाड़ के प्रताप के गाने गा रहे हैं और पहाड़ के गौरव के नशे में चूर हैं। झरनों के झरने में एक तरह का नशा है। जिस तरह नशे में आदमी लड़खड़ाकर चलता है उसी तरह झरनों के गिरने में थोड़ा बेबाकपन है।
पहाड़ के ऊपर और आस पास पेड़ भी होते हैं जो उस दृष्टिपटल की सुंदरता को बढ़ाते हैं। पर्वत के हृदय से पेड़ उठकर खड़े हुए हैं और शांत आकाश को अपलक और अचल होकर किसी गहरी चिंता में मग्न होकर बड़ी महात्वाकांक्षा से देख रहे हैं। ये हमें ऊँचा, और ऊँचा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं।
अचानक मौसम बदल जाता है और लगता है जैसे पर्वत अचानक अपने पारे जैसे चमकीले पंख फड़फड़ाकर कहीं उड़ गया है। अब केवल झरने की आवाज निशानी के तौर पर रह गई है; क्योंकि धरती पर आसमान टूट पड़ा है। जब सर्दियों में बारिश होने लगती है तो घने कोहरे की वजह से दूर कुछ भी नजर नहीं आता है। इसलिए ऐसा लगता है जैसे पहाड़ उड़कर कहीं चला गया है।
बारिश हो रही है तो ऐसा लग रहा है जैसे इंद्र बादलों के विमान में घूम घूम कर कोई इंद्रजाल या जादू कर रहे हों। इस जादू के असर से इतना धुआँ उठ रहा है जैसे पूरा ताल जल रहा हो। ये कोहरे का चित्रण है। इस जादू के डर से शाल के विशाल पेड़ भी गायब हो गए हैं जैसे डर के मारे जमीन में धँस गए हों।
सुमित्रानंदन पंत आधुनिक हिन्दी साहित्य के एक युग
प्रवर्तक कवि हैं। उन्होंने भाषा को निखार और संस्कार देने, उसकी सामर्थ्य को उद्घाटित करने के अतिरिक्त नवीन विचार व भावों की समृद्धि दी।
पंत सदा ही अत्यंत सशक्त और ऊर्जावान कवि रहे हैं। सुमित्रानंदन पंत को मुख्यत: प्रकृति का कवि माना जाने लगा। लेकिन पंत वास्तव में मानव-सौंदर्य और
आध्यात्मिक चेतना के भी कुशल कवि थे।
यही कारण है कि पंत जी सुकुमार कवि कहलाते हैं।
यहाँ पर पर्वत श्रृंखला की तुलना करघनी (कमर में पहनने वाला गहना) से की गई है। विशाल पर्वत अपने सैंकड़ों फूल जैसी आँखों को फाड़कर नीचे पानी में जैसे अपना ही अक्स निहार रहा हो। साधारण भाषा में कहा जाये तो पानी में पहाड़ का प्रतिबिम्ब बन रहा है। पहाड़ के चरणों में जलराशि किसी विशाल आईने की तरह फैली हुई है।
कवि ने झरनों की सुंदरता का बखान किया है। झरने मोती की लड़ियों की तरह झर रहे हैं। उनकी कल-कल ध्वनि से ऐसा लगता है जैसे वे पहाड़ के प्रताप के गाने गा रहे हैं और पहाड़ के गौरव के नशे में चूर हैं। झरनों के झरने में एक तरह का नशा है। जिस तरह नशे में आदमी लड़खड़ाकर चलता है उसी तरह झरनों के गिरने में थोड़ा बेबाकपन है।
पहाड़ के ऊपर और आस पास पेड़ भी होते हैं जो उस दृष्टिपटल की सुंदरता को बढ़ाते हैं। पर्वत के हृदय से पेड़ उठकर खड़े हुए हैं और शांत आकाश को अपलक और अचल होकर किसी गहरी चिंता में मग्न होकर बड़ी महात्वाकांक्षा से देख रहे हैं। ये हमें ऊँचा, और ऊँचा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं।
अचानक मौसम बदल जाता है और लगता है जैसे पर्वत अचानक अपने पारे जैसे चमकीले पंख फड़फड़ाकर कहीं उड़ गया है। अब केवल झरने की आवाज निशानी के तौर पर रह गई है; क्योंकि धरती पर आसमान टूट पड़ा है। जब सर्दियों में बारिश होने लगती है तो घने कोहरे की वजह से दूर कुछ भी नजर नहीं आता है। इसलिए ऐसा लगता है जैसे पहाड़ उड़कर कहीं चला गया है।
बारिश हो रही है तो ऐसा लग रहा है जैसे इंद्र बादलों के विमान में घूम घूम कर कोई इंद्रजाल या जादू कर रहे हों। इस जादू के असर से इतना धुआँ उठ रहा है जैसे पूरा ताल जल रहा हो। ये कोहरे का चित्रण है। इस जादू के डर से शाल के विशाल पेड़ भी गायब हो गए हैं जैसे डर के मारे जमीन में धँस गए हों।
सुमित्रानंदन पंत आधुनिक हिन्दी साहित्य के एक युग
प्रवर्तक कवि हैं। उन्होंने भाषा को निखार और संस्कार देने, उसकी सामर्थ्य को उद्घाटित करने के अतिरिक्त नवीन विचार व भावों की समृद्धि दी।
पंत सदा ही अत्यंत सशक्त और ऊर्जावान कवि रहे हैं। सुमित्रानंदन पंत को मुख्यत: प्रकृति का कवि माना जाने लगा। लेकिन पंत वास्तव में मानव-सौंदर्य और
आध्यात्मिक चेतना के भी कुशल कवि थे।
यही कारण है कि पंत जी सुकुमार कवि कहलाते हैं।
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