Hindi, asked by DhawalDutta, 2 months ago

सुमित्रानंदन पंत कि कविता "मानव" का भावार्थ 500 शब्द में लिखिए

Answers

Answered by mauryasangita716
0

हर घर, हर दर, बाहर, भीतर,

नीचे ऊपर, हर जगह सुघर,

कैसी उजियाली है पग-पग,

जगमग जगमग जगमग जगमग!

छज्जों में, छत में, आले में,

तुलसी के नन्हें थाले में,

यह कौन रहा है दृग को ठग?

जगमग जगमग जगमग जगमग!

पर्वत में, नदियों, नहरों में,

प्यारी प्यारी सी लहरों में,

तैरते दीप कैसे भग-भग!

जगमग जगमग जगमग जगमग!

राजा के घर, कंगले के घर,

हैं वही दीप सुंदर सुंदर!

दीवाली की श्री है पग-पग,

जगमग जगमग जगमग जगमग!

आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ / हरिवंशराय बच्चन

आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।

है कंहा वह आग जो मुझको जलाए,

है कंहा वह ज्वाल पास मेरे आए,

रागिनी, तुम आज दीपक राग गाओ;

आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।

तुम नई आभा नहीं मुझमें भरोगी,

नव विभा में स्नान तुम भी तो करोगी,

आज तुम मुझको जगाकर जगमगाओ;

आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।

मैं तपोमय ज्योति की, पर, प्यास मुझको,

है प्रणय की शक्ति पर विश्वास मुझको,

स्नेह की दो बूंदे भी तो तुम गिराओ;

आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।

कल तिमिर को भेद मैं आगे बढूंगा,

कल प्रलय की आंधियों से मैं लडूंगा,

किन्तु आज मुझको आंचल से बचाओ;

आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।

Similar questions