सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित प्रकृति पर आधारित एक कविता लिखें।
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सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित
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जीना अपने ही में
जीना अपने ही में… एक महान कर्म है
जीने का हो सदुपयोग… यह मनुज धर्म है
अपने ही में रहना… एक प्रबुद्ध कला है
जग के हित रहने में… सबका सहज भला है
जग का प्यार मिले… जन्मों के पुण्य चाहिए
जग जीवन को… प्रेम सिन्धु में डूब थाहिए
ज्ञानी बनकर… मत नीरस उपदेश दीजिए
लोक कर्म भव सत्य… प्रथम सत्कर्म कीजिए
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आलोकित हो उठता सुख से मेघों का नभ चंचल, अंतरतम में एक मधुर स्मृति जग जग उठती प्रतिपल! कम्पित करता वक्ष धरा का घन गभीर गर्जन स्वर, भू पर ही आगया उतर शत धाराओं में अंबर! भीनी भीनी भाप सहज ही सांसों में घुल मिल कर एक और भी मधुर गंध से हृदय दे रही है भर!
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