"सुमित्रा उछाह में चली गई तो लाजो फिर मुस्कुराई । सोचने लगी, “आदमी का मन भी क्या चीज है।
।
सुमित्रा कल तक मुझसे अपने बेटे और बहू की निर्दयता की कहानी कहते-कहते रो पड़ती थी। आज
बेटे ने तनिक प्रेम से छू दिया तो माँ के भीतर जमा हुआ सारा गिला-शिकवा गलकर बह गया और
उसका झुका हुआ सिर तन कर ऊँचा हो गया।"
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maa ki mamta yesi hi hoti h
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