सामंती संस्कृति से क्या आशय है उसका मुहावरा बदलने का क्या तात्पर्य है
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सामंतवाद मध्यकालीन युग में इंग्लैंड और यूरोप की प्रथा थी। इन सामंतों की कई श्रेणियाँ थीं जिनके शीर्ष स्थान में राजा होता था। उसके नीचे विभिन्न कोटि के सामंत होते थे और सबसे निम्न स्तर में किसान या दास होते थे। यह रक्षक और अधीनस्थ लोगों का संगठन था। राजा समस्त भूमि का स्वामी माना जाता था। सामंतगण राजा के प्रति स्वामिभक्ति बरतते थे, उसकी रक्षा के लिए सेना सुसज्जित करते थे और बदले में राजा से भूमि पाते थे। सामंतगण भूमि के क्रय-विक्रय के अधिकारी नहीं थे। प्रारंभिक काल में सामंतवाद ने स्थानीय सुरक्षा, कृषि और न्याय की समुचित व्यवस्था करके समाज की प्रशंसनीय सेवा की। कालांतर में व्यक्तिगत युद्ध एवं व्यक्तिगत स्वार्थ ही सामंतों का उद्देश्य बन गया। साधन-संपन्न नए शहरों के उत्थान, बारूद के आविष्कार, तथा स्थानीय राजभक्ति के स्थान पर राष्ट्रभक्ति के उदय के कारण सामंतशाही का लोप हो गया।.
यूरोप में सामंतवाद का विकास सामान्यतः इन परिस्थितियों में हुआ। रोमन साम्राज्य के टूटने के बाद उस पर पश्चिमी यूरोप की असभ्य जातियां-फ्रैंक लोम्बार्ड तथा गोथ इत्यादि ने अधिकार कर लिया। इन लुटेरी जातियों ने समाज और सरकार को सर्वथा नवीन रूप दिया। पांचवीं शताब्दी तक रोमन साम्राज्य अपनी रक्षा करने में असमर्थ हो चुके थे। जर्मन की बर्बर जातियों के आक्रमण के कारण इटली के गांव असुरक्षित से हो गए थे, क्योंकि सरकार सुरक्षा करने में समर्थ नहीं थी जिसके परिणामस्वरूप जनता ने अपनी सुरक्षा के लिए शक्तिशाली वर्ग से समझौता किया। यही शक्तिशाली वर्ग आगे चलकर सामंतवाद के आधार बने। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में भी सुरक्षा की आवश्यकता पर विशेष बल दिया गया है। उसके अनुसार ‘‘सामंतवाद के जन्म में सुरक्षा की भावना प्रधान थी। संभावित विदेशी आक्रमण तथा सरकारी अफसरों की अनियंत्रित मांगों से छुटकारे के लिए एक ऐसी सत्ता की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी, जो उन्हें किसी भी कीमत पर सुरक्षा प्रदान कर सके।’’
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