सुमन झूला सोहे तंग सभी मारी दे पंक्ति में कौन सा रस है
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सार छंद
दिनकर निसदिन गगन लखाते,
कभी गम्म ना खाते।
चंदा चम चम चम चम चमके,
चाँद चमक जग छाते।।
सूरज चंदा रुकें कभी ना,
सृष्टी सार सराते।
लक्ष्मी हरि इच्छा से चलना,
सबको प्रभो चलाते।।
प्रभु पग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रेदश
तर्ज-राधा ढूढ़ रहीं--
मोहन खोज रहे,
मुरली हिरा गयी।
न जाने कहाँ गयी--
मोहन खोज रहे,
मुरली हिरा गयी।।
1-मुरली मोरी मन प्यारी थी।
होंठन सजी लगत न्यारी थी।।
कोनन खोज करे--
मुरली हिरा--
2-जाँगन ताँगन जाकें देखी।
मनुआ सें अब जाय न लेखी।।
सोहन सोच सजे--
मुरली हिरा ---
3-कांहाँ यसुदा माँ ढिग आये।
मन ही मन प्रभुवर मुस्काये।।
कांहाँ रूठ गये--
मुरली हिरा गयी--
4-लक्ष्मी आश लगावें भाई।
वंशी की लय मन में छाई।।
मनहर ध्यान धरे--
मुरली हिरा ---
5-वंशी श्वाशा तन की खावै।
लल्ला वांसुरिया ना पावै।।
मोरे मने दुखे--
मुरली हिरा---
6-वेटा अपनी मुरली लै लो।
मुरली धर की पदवी लै लो।।
माँ मन मोह भरे--
मुरली हिरा ----
प्रभु पग धूल
लक्ष्मी कान्त सोनी
महोबा
उत्तर प्रदेश