सामने कुहरा घना है।
और मैं सूरज नहीं हूँ
क्या इसी अहसास में जिऊँ
या जैसा भी हूँ नन्हा-सा
इक दीया तो हूँ
क्यों न उसी की उजास में जिऊँ?
हर आने वाला क्षण
मुझे यही कहता है-
अरे भई, तुम सूरज तो नहीं हो और मैं कहता हूँ-
न सही सूरज
एक नन्हा दीया तो हैं
जितनी भी है लौ मुझ में
उसे लेकर जिया तो हूँ।
कम से कम मैं उनमें तो नहीं
जो चाँद दिल के बुझाए बैठे है
हर रात को अमावस बनाए बैठे।
उड़ते फिर रहे थे जो जुगनू और
उन्हें भी मुट्टियों में दबाए बैठे ।
(क) 'कुहरा और दीया' किसके प्रतीक है?
कुश और दीया सूरज के प्रतीक
(ख) 'जो चाँद दिल के बुझाए बैठे' से क्या तात्पर्य है?
Answers
Answered by
34
(‘क) कुहरा’ और ‘सूरज’ किसके प्रतीक हैं?
उतर : कुहरा निराशा का प्रतीक है और सूरज आशा का प्रतीक है |
(ख) जो चाँद दिल के बुझाए बैठे' से क्या तात्पर्य है?
उतर : जो चाँद दिल के बुझाए बैठे' से निराश- हताश व्यक्ति से तात्पर्य है| कुछ व्यक्ति पहले से हार मान कर बैठ जाते है | जल्दी ही निराशा को अपना लेते है |
Answered by
7
Answer:
कुहरा ‘निराश’ के प्रतिक हैं
सुरज ‘आशा’ के प्रतिक हैं
Explanation:
I hope you will understand
Similar questions