सामन
टोकियो के एक बड़े रास्ते पर हजारों की भीड़ थी। एक महल में आग लग गई थी, बहुमूल्य महल और
जल रहा था। चारों तरफ लपटें उठ रही थीं। सैकड़ों लोग अंदर का सामान बाहर ला रहे थे। महल का मालिक
मीठ
के
वा
मालिक ने फिर कहा- "एक बार फिर अंदर जाकर देख आओ, कुछ रह न गया हो, जो भी हो बचा लाओ।"
खड़ा था- बेहोश-सा। लोग उसे सँभाले थे। वह समझ नहीं पा रहा था कि एक ही पल में क्या हो गया? लोग
तिजोरियाँ, किताबें, कपड़े, कीमती दस्तावेज लेकर बाहर आए। जितना सामान बचाया जा सकता था बचा लिया गय
लोग भीतर गए और कुछ सामान लेकर बाहर लौटे-खुश खुश कि बचा लाए बहुत कुछ। वे एक बार फिर अंदा
गए. परंतु अबकी बार रोते रोते बाहर निकले- छाती पीटते हुए। सारी भीड़ ने पूछा, "क्यों रोते हो?'' उन्होंने कहा,
"हमसे बड़ी भारी भूल हो गई, महल के मालिक का एक ही बेटा था, वह भीतर सोया था, हम उसे बचाना भूल
गए। सारा सामान बचा लिया परंतु सामान का असली मालिक जल मरा।"
हम भी कुछ इसी प्रकार अपने जीवन में व्यर्थ की वस्तुओं को संग्रहित करने में तथा बचाने में लगे रहते हैं परंतु
अपने भीतर के असली मालिक को खोज नहीं पाते। हमें पता नहीं कि हमको क्या बचाना है और क्या छोड़
देना है? हम वस्तुएँ बचाते हैं, परंतु आत्मा को खो देते हैं।
i. गद्यांश के दो शीर्षक लिखिए।
ii. महल का मालिक होश में क्यों नहीं था?
iii. मालिक ने लोगों से फिर अंदर जाने को क्यों कहा?
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क्योंकि महल में आग की लपटें उठ रही थी
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