३. स्नेह-निर्झर बह गया है
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
स्नेह-निर्झर बह गया है।
रेत ज्यों तन रह गया है।
आम की यह डाल जो सूखी दिखी,
कह रही है- "अब यहाँ पिक या शिखी
नहीं आते, पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
नहीं जिसका अर्थ-
जीवन दह गया है।"
iska bhawarth ?
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