'स्नेह-शपथ' कविता में कवि जिह्व को क्या भूल करने से रोक रहा है?
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दोस्त या कि वह दुश्मन हो,
हो परिचित या परिचय विहीन;
तुम जिसे समझते रहे बड़ा
या जिसे मानते रहे दीन;
यदि कभी किसी कारण से
उसके यश पर उड़ती दिखे धूल,
तो सख्त बात कह उठने की
रे, तेरे हाथों हो न भूल।
मत कहो कि वह ऐसा ही था,
मत कहो कि इसके सौ गवाह;
यदि सचमुच ही वह फिसल गया
या पकड़ी उसने गलत राह -
तो सख्त बात से नहीं, स्नेह से
काम जरा लेकर देखो;
अपने अंतर का नेह अरे,
देकर देखो।
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