सैनिक की आत्मकथा शब्द 1000
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मैं धर्मपाल सिंह भारतीय सेना के गढ़वाल रेजिमेंट का एक सैनिक हूँ । मेरे पिता स्वर्गीय श्री करमचंद जी भी भारतीय सेना में थे जिन्होंने भारत-चीन युद्ध में देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था ।
मेरे दादा जी ने भी सेना में रहते हुए अपना संपूर्ण जीवन भारत-माता की सेवा के लिए समर्पित कर दिया । इस प्रकार देश सेवा के लिए समर्पण का भाव मुझे विरासत में ही मिला । वह दिन मेरे जीवन का सबसे सुखद दिन था जब मुझे भारतीय सेना के लिए नियुक्त किया गया था ।
सेना में नियुक्ति के उपरांत प्रशिक्षण के लिए मुझे पठानकोट भेजा गया । पठानकोट प्रशिक्षण छावनी में मेरे अतिरिक्त चौदह साथी और थे जिनकी नियुक्ति मेरे साथ ही हुई थी । हम सभी में एक नया जोश, स्फूर्ति तथा देश सेवा की प्रबल भावना थी ।
प्रशिक्षण के दौरान हमें अत्यंत कठिन अवसरों से गुजरना पड़ा परंतु अपने दृढ़ निश्चय एवं मजबूत इरादों से हमने सभी कठिनाइयों पर विजय पाई । कठोर प्रशिक्षण के दौरान ही मैं यह समझ पाया कि यदि हमारे सैनिक देश को हर बाह्य संकट से निकाल कर अपने नागरिकों को सुखपूर्वक जीने का अवसर प्रदान करते हैं तो इसमें सैनिकों के प्रशिक्षण और अनुशासन की अहम भूमिका है ।
कई बार मैं इतना थक जाता था कि बरबस ही घर की याद आ जाती थी लेकिन घरवालों से मिलने की इजाजत का तो प्रश्न ही नहीं था । प्रशिक्षण समाप्त होने के पश्चात् जम्मू के भारत-पाक सीमा पर मेरी प्रथम नियुक्ति हुई ।
मैं देश के एक सजग प्रहरी के रूप में अपने कर्त्तव्यों का बड़ी ही निष्ठा व ईमानदारीपूर्वक निर्वाह करता हूँ । अपनी भारत-माता की रक्षा के लिए मुझे जो अवसर ईश्वर ने दिया है उसके लिए मैं ईश्वर को सदैव धन्यवाद देता हूँ और स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता हूँ कि मैं उन हजारों सैनिकों में से एक हूँ जिन्हें भारत-माँ की रक्षा का अवसर मिला । मेरी रेजिमेंट के सभी अन्य सैनिकों के साथ मित्रता है । हम सभी एक ही परिवार के सदस्य की भाँति मिल-जुल कर रहते हैं ।
यहाँ धर्म, जाति और समुदाय का सम्मिलन देखकर मन में यह भाव कभी-कभी अनायास आ जाता है कि काश ! हमारे सभी देशवासी सांप्रदायिक मानसिकता से ऊपर उठकर कार्य करें तो भारत-भूमि एक बार फिर से अपने प्राचीन गौरव को प्राप्त कर सकेगी । हम सभी के अनुभव अलग हैं परंतु सभी का लक्ष्य एक है – ‘देश की रक्षा के लिए आत्म-समर्पण ।’
पिछले वर्ष सरदियों की बात है जब हमारे कैप्टन ने हमें सूचना दी थी कि हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान ने कारगिल से भारतीय सीमा पर घुसपैठ प्रारंभ कर दी है । प्रात:काल ही उसे रोकने हेतु हमें आगे कूच करना था । ठंड की वह रात्रि आज भी मेरी स्मृति पटल पर है जिस रात्रि दुश्मनों के छक्के छुड़ा देने के मनोभाव के कारण मैं सो नहीं सका ।
सुबह होते ही हमने दुश्मनों पर धावा बोल दिया । दोनों ओर से निरंतर गोलाबारी चलती रही । इस गोलाबारी में मेरे तीन साथी शहीद हुए । हमने भी दुश्मन के दर्जनों सैनिकों को मार गिराया । उनके अनेकों टैंक आदि नष्ट कर दिए ।
हम सभी अपने प्राणों की परवाह न करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे । तभी दुश्मनों का एक हथगोला मेरे समीप आकर फटा । जब होश आया तो मैंने स्वयं को अस्पताल में पाया । मेरे शरीर का दाहिना भाग बुरी तरह जख्मी हो गया था । मेरी सारी उत्सुकता व मेरा सारा ध्यान सीमा पर था । तभी हमें भारतीय सेना की विजय का समाचार मिला । हमारे रक्षामंत्री ने स्वयं आकर हम सभी को बधाई दी ।
आज मैं पुन: स्वस्थ होकर अपनी सेना का अंग हूँ । हाल ही में दो हफ्ते की छुट्टियों बिताकर अपने घर रानीखेत से वापस लौटा हूँ । वहाँ लोगों का आदर-सम्मान व प्यार मुझे बल प्रदान करता है । बुजुर्गों का आशीर्वाद कठिनाइयों को हँसते हुए झेलने की शक्ति देता है ।
मेरा बेटा अभी चार वर्ष का है । मेरा और मेरी धर्मपत्नी दोनों का यही स्वप्न है कि हमारा पुत्र भी बड़ा होकर देश की सेवा में स्वयं को समर्पित कर सके और एक सैनिक के रूप में अपने देश व परिवार के नाम को गौरवान्वित कर सके ।
जय हिंद !
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